For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से

अचानक बाहर फुदक आयी हैं कुछ नम रोशनियाँ... /आज फिर.. ..

एक बार फिर

मासूम सी कोशिश की है इनने..

कि, मनाँगन में

कशिशभरी आवारा धूप बन लहर-लहर नाचेंगी..

 

तुम मेरे साथ हो न हो.... ..

इन रोशनियों के साथ जरूर होना.. ..

...............कोशिश तो करना.. ..

मुझे पता है .. गया समय उल्टे पाँव नहीं चलता..

किन्तु इन भोली-निर्दोष रोशनियों को अब कौन समझाये..

और देखो.. ..

तुम भी मत समझाना.. ../अभी बचपना नहीं गया है न../

---चिर युवा होने का श्राप जो लगा है--

इनके अवगुंठित

दग्ध परिचय को

तुम अपने होने भर का अहसास भरा मरहम दे सको

तो, मैं खुशी-खुशी कुछ और खोल दूँ

अपने इस बेतरतीब कमरे के दरवाजे

 

रोशनियों को जाने क्यों... कबसे..  मेरा रूप मिल गया है.. 

और बार-बार.. मेरे रूप को ओढ़े

फुदक-फुदक आती हैं--

स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से बाहर

उनकी अल्हड़ मासूमियत पर जाने क्यों

मेरी आँखों की समझदार कोर तक

नासमझ बनी   नम-नम हुई जाती हैं... ..

 

काश.. काश..

काश.... ..

.

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Veerendra Jain on June 25, 2011 at 12:56pm
ek baar padhkar mann nahi bharta..ati uttam rachna..saurabh sir ..hardik badhai..
Comment by Abhinav Arun on June 25, 2011 at 12:51pm

निश्छल जल सी प्रवाह मान काव्य के लिए साधुवाद श्री saurabh जी !

"मुझे पता है .. गया समय उल्टे पाँव नहीं चलता..

किन्तु इन भोली-निर्दोष रोशनियों को अब कौन समझाये..''

सोच और सन्दर्भों की एक अलग दुनिया की सैर कराती रचना ...अति सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service