आओ साथी बात करें हम
अहसासों की रंगोली से रिश्तों में जज़्बात भरें हम..
रिश्तों की क्यों हो परिभाषा
रिश्तों के उन्वान बने क्यों
हम मतवाला जीवनवाले
सम्बन्धों के नाम चुने क्यों
तुम हो, मैं हूँ, मिलजुल हम हैं, इतने से बारात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.........
शोर भरी ख्वाहिश की बस्ती--
--की चीखों से क्या घबराना
कहाँ बदलती दुनिया कोई
उठना, गिरना, फिर जुट जाना
स्वर-संगम से अपने श्रम के, मन कव्वाली-नात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.......
सूखी बाड़ी, कंटक, झाड़ी
निर्मम-निष्ठुर जीवन कितना
चाहत-मरुथल, सपन बगूले
प्यासी भटकन, हतप्रभ जीना
द्वेष-दमन की दुपहरिया को मिलजुल कर सुख-रात करें हम..
आओ साथी बात करें हम............
हामी भरती रात सिसकती
दिन का हासिल ’स्वर क्रंदन के’
उमस भरी है बगिया मन की
जटिल हुए उच्छ्वास पवन के
कठिन निशा है साथी मेरे, आओ मिलजुल प्रात करें हम..
आओ साथी बात करें हम...........
नहीं भरोसा, नहीं समर्पण
लोभ-लाभ ही का नाता है
नहीं दिखे जो स्नेह परस्पर
रिश्ता फिर क्या कहलाता है
तेरा मुझसे, मेरा सबसे, प्यार बढ़े, हालात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.........
Comment
डा. प्राची, आपकी प्रतिक्रिया ने हमारा उत्साह दूना कर दिया है. आपको मेरा रचना-कर्म रुचा, इस हेतु मैं आपके प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ.
सादर
विश्वास के व्यवहार को इंगित करने के लिये धन्यवाद.
वीरेन्द्रजी, बहुत-बहुत धन्यवाद.
.
मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि इस कविता को दुबारा पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता. "हामी भरती रात सिसकती" और "द्वेष-दमन की दुपहरिया" जैसी उपमाएँ रचना में चार-चाँद लगा रही हैं. तिस पर प्रवाह है कि पूरी कविता एक स्वर में निकलती है. हार्दिक बधाई सौरभ सर!
भाई अरुण ’अभिनव’जी..
अपनी भावनाओं को अनुमोदित हुआ देख मन वस्तुतः कव्वाली-नात की मुरकियाँ ले रहा है. सहयोग की सदैव अपेक्षा रहेगी. हार्दिक धन्यवाद.
कहाँ बदलती दुनिया कोई
उठना, गिरना, फिर जुट जाना
स्वर-संगम से अपने श्रम के, मन कव्वाली-नात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.......
वाह क्या तारीफ़ करें हम .. रचना ने सकारात्मक सोच की सरिता प्रवाहित कर दी .. सच्ची और सन्देश परक रचना हार्दिक बधाई सौरभ जी को !!
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