अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ
सही-गलत का ज्ञान नहीं
पर, दिल की अपने सुनता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
ऊँच -नीच का भेद नहीं
विश्वासघात ना करता हूँ
सीरत नहीं मैं, भाव देखता
प्रेम सभी से करता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
आस्तिक हूँ मैं धर्म मानता
ना कटाक्ष, किसी पर करता हूँ
साधु संतों का आदर कर
हृदय से सम्मान,
वृद्धजनों का, करता करता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
काम को अपने मैं, पूजता
पर जी हजूरी ना करता हूँ
गलती पर मैं क्षमा मांगता
ना काम से आँख-मिचौली करता हूँ
साधारण सी जिंदगी जीता
हृदय में, उच्च विचार को रखता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
“मौलिक और अप्रकाशित”
Comment
भाई बृजेश हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
अच्छी रचना के लिए बधाई आदरणीय..
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