संस्कार की नींव दे, उन्नति का प्रासाद
हर मन बंदिश में रहे, हर मन हो आजाद।१।
महल झोपड़ी सब जगह, भरा रहे भंडार
जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार।२।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।३।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।४।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।५।
निर्धन को नव वर्ष की, बस इतनी पहचान
छोड़ उदासी ओढ़ता, अधरों पर मुस्कान।६।
फिरते हैं बेसुध यहाँ, जो मदिरा में डूब
सुध उनको भी कुछ मिले, मंदिर जायें खूब।७।
स्नेह संयम विश्वास का, फेरा हो हर द्वार
खुशियों की बगिया करे, नया साल गुलज़ार।८।
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई बृजेश जी, सादर आभार ।
वाह वाह आदरणीय बहुत ही उत्तम दोहे..
आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, दोहों की प्रशंसा के लिए आभार । आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन।,, बेहतरीन दोहों के लिए हार्दिक बधाई और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित हैं। सादर
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन।,, बेहतरीन दोहों के लिए हार्दिक बधाई और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित हैं। सादर
आपको भी नववर्ष की हार्दिक बधाई।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन साथ ही नव वर्ष की शुभकामनाएँ। दोहों की प्रशंसा व मार्दर्शन के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,नववर्ष पर अच्छे दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार'
इस पंक्ति में 'जायें' बहुवचन है,और 'भूखे' एक वचन,इसे यूँ करें:-
'जिस दर भी जाये मिले' या यूँ करें:-
'जिस दर भी जायें मिले, भखों को आहार'
' हर नफरत का शूल'
इस पंक्ति को मेरे ख़याल से यूँ करना उचित होगा:-
'नफ़रत का हर शूल'
आवश्यक सूचना:-
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