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मेरे आसमान का चाँद ...

आसमान का चाँद :

शीत रैन की
धवल चांदनी में
बैचैन उदास मन
बैठ जाता है उठकर
करने कुछ बात
आसमान के चाँद से

मैं अकेली
छत की मुंडेर पर
उसकी यादों में
स्वयं को आत्मसात कर
मांगती हूँ अपना प्यार
आसमान के चाँद से

केसरिया चांदनी में
उसका प्यार
लेकर आया था
मेरे पास
मौन चाहतें
उदास प्यास
अदृश्य समर्पण
कहती रही
मौन व्यथा
देर तक

आसमान के चाँद से

कौमुदी रैन में
तकिये पर बिखरी
उसकी गंध को
सहेजते सहेजते
मैं कब सो गयी
कुछ पता न चला
निश्चिंत हो गयी
श्वासों में जीवित
कस्तूरी गंध से सुवासित
सपनों में
स्वयं को समाहित कर
दूर होकर भी
मिल गया
मुझे उपहार
मेरे चाँद का
पलकों की दहलीज़ पर

आसमान के चाँद से

हो गया
मेरा चाँद
मेरे आसमान का चाँद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 409

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2019 at 7:33pm

आ. भाई सुशील जी, अच्छी कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on January 21, 2019 at 3:53pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। आपके द्वारा त्रुटि बिलकुल सही है। पोस्ट करने से पहले मैं एडिट करने भूल गया। अभी संशोधित कर पुनः पोस्ट करता हूँ। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on January 19, 2019 at 11:24pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'आसमान का चाँद से'--"आसमान के चाँद से"

ये त्रुटि दो जगह है,देखियेगा ।

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