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ग़ज़ल
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है दुनिया में कितनी रवानी न पूछो
महकती है कितनी कहानी न पूछो
इसे चाँद के पार जाना था मिलने
कहाँ रह गई ज़िंदगानी न पूछो
रहा दर बदर आशिक़ी का मैं मारा
गई बीत कैसे जवानी न पूछो
तेरे इश्क़ में मैंने गोता लगाया
मिली मुझको क्या क्या निशानी न पूछो
मुहब्बत की रस्में निभाते निभाते
रहा चश्म में कितना पानी न पूछो
कभी ग़म के बादल कभी सर्द आहें
पड़ीं कितनी बातें भुलानी न पूछो
-- क़मर जौनपुरी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
मोहतरम जनाब लक्ष्मण धामी साहब और मोहतरम जनाब अजय तिवारी साहब ग़ज़ल में शिरकत और हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय कमर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आ. भाई कमर जौनपुरी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
मोहतरम आसिफ जैदी साहब और मोहतरम आमोद श्रीवास्तव जी का बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफ़ज़ाई के लिए।
मोहतरम जनाब समर कबीर साहब बहुत बहुत मेहरबानी इस्लाह के लिए।
चश्म की जगह आंखों कर दिया हूँ।
इसे को उसे कर दिया हूँ।
बस ऐसे ही नज़रे इनायत बनाये रखें।
मोहतरम जनाब क़मर जौनपुरी साहब बहुत ख़ूब,
मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह इसमे और ख़ूबसूरती पैदा करती है, मुबारकबाद आपको बहुत बहुत....
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' इसे चाँद के पार जाना था मिलने'
इस मिसरे में 'इसे' की जगह "उसे" कर लें ।
'रहा चश्म में कितना पानी न पूछो'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'चश्म' की जगह "आँख" कर लें ।
आ बहुत खूब ..कभी गम के बादल,कभी सर्द आहें।पड़ी कितनी बातें भुलानी न पूछो ....
बहुत बढ़िया सर
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