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दरमियाँ    हुस्न    पर्दा    दारी   है ।
कैसे    कह   दूँ  के   बेक़रारी   है ।।

ऐ  कबूतर  जरा  सँभल   के  उड़ ।
देखता  अब   तुझे    शिकारी   है ।।

कौन  कहता  बहुत  ख़फ़ा  हैं  वो ।
आना  जाना  तो  उनका   जारी है ।।

सब   बताता   है   नूर   चेहरे   का ।
रात    उसने   कहाँ    गुजारी    है ।।

कैसे  कर  लूं  यकीन  मैं  तुम  पर ।
साफ   नीयत   कहाँ   तुम्हारी  है ।।

अब  तलक  होश  में  नहीं  हो तुम ।
आंख  में   इश्क़   की  खुमारी   है ।।

उसकी  किस्मत  को   दाद  देता  हूँ ।
जुल्फ   जिसने   तेरी   सँवारी   है ।।

आप   ऐसे   क्यूँ   बात   करते   हैं ।
जैसे  मुझ   पर    कोई   उधारी   है ।।

अब  खजाना  वहाँ  से  निकलेगा ।
रोज   मिलता  जहाँ  भिखारी   है ।।

शर्त   वह  फिर   लगा  के   हारेगा ।
फ़ितरते   इश्क़   तो   जुआरी   है ।।

वोट   की   ख़्वाहिशें   जरा  देखो ।
कोई    नेता   बना    मदारी     है ।।

हिज्र   में  अश्क़  बह  गए   इतने ।
अब  तलक वो  नदी तो  खारी  है ।।

मौत   से   कौन   बच  सका  यारो ।
आज  हम  कल  तुम्हारी  बारी  है ।।

       डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
        मौलिक अप्रकाशित










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Comment by Sushil Sarna on March 19, 2019 at 4:47pm

हिज्र में अश्क़ बह गए इतने ।
अब तलक वो नदी तो खारी है ।।

वाह बहुत सुंदर भावों की ग़ज़ल पेश की है सर आपने। दिल से बधाई स्वीकार करें।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 19, 2019 at 2:26pm

आ0 लक्ष्मण धामी साहब हार्दिक आभाव

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2019 at 6:59pm

आ. भाई नवीन जी, सादर हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 12, 2019 at 1:26pm

आ0 कबीर सर सादर नमन और आभार।

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 12:10pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'सब   बताता   है   नूर   चेहरे   का'

इस मिसरे में तनाफ़ुर है,'सब' की जगह "ये" कर लें ।

'उसकी  किस्मत  को   दाद  देता  हूँ '

इस मिसरे में तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'दाद क़िस्मत को उसकी देता हूँ'

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