For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ

फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ

दर्द आहों में बदलने क्यूँ लगी कुर्वानियाँ

जान लेने को खड़े तैयार सारे आदमी

हर जगह बढ़ने लगी है आज कल विरानियाँ

घूमते थे रात दिन हम आपकी ही चाह में

जब समझ आया खुदा तो हो गईं आसानियाँ

जोड़ तिनके है बनाया आशियाँ तुम सोच लो

आबरू इस में छुपी है मत करो नादानियाँ

गंध आने है लगी क्यूँ फिर यहाँ बारूद की

याद कर तू बस खुदा को छोड़ बेईमानियाँ

आदमी मजबूर देखो हो गया इस दौर में

खून में शामिल हुई क्यूँ सोच नाफर्मानियाँ

मुनीश “तन्हा” नादौन

मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 353

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 17, 2019 at 4:55pm

आद0 मुनीश तन्हा जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने और आद0 समर साहब की इस्लाह से और बेहतरीन हो गयी। बधाई स्वीकार कीजिये। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2019 at 7:02pm

आ. भाई मुनीश जी, गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 2:33pm

जनाब मुनीश "तन्हा" जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ

दर्द आहों में बदलने क्यूँ लगी कुर्वानियाँ'

ऊला मिसरे में 'है' को "हैं" औए 'देखों' को "देखो" कर लें,और सानी मिसरे में 'लगी' को "लगीं" कर लें ।

'हर जगह बढ़ने लगी है आज कल विरानियाँ'

इस मिसरे में 'है' को "हैं" कर लें ।

'गंध आने है लगी क्यूँ फिर यहाँ बारूद की'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'गंध क्यों आने लगी है फिर यहाँ बारूद की'

कुछ शब्दों में नुक़्ते नहीं लगाए हैं आपने,देख लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service