1-
हिरणाकुश नामक था, इक सुल्तान।
खुद को ही कहता था, जो भगवान।।
2-
जन्मा उसके घर में, सुत प्रहलाद।
जो करता था हर पल, प्रभु को याद।।
3-
दोनोों के थे विचार, सब विरुद्ध।
हिरणाकुश था सुत से, भारी क्रुद्ध।।
4-
बहिन होलिका पर था, ऐसा चीर।
जिसे पहनने से ना, जले शरीर।।
5-
मिला होलिका को तब, यह आदेश।
प्रहलाद को गोद लो, कटे कलेश।।
6-
बैठा गोद जपा फिर, प्रभु का नाम।
हुआ होलिका का ही, काम तमाम।।
7-
होलिका दहन का है, यह आधार।
इसी वजह से मनता, ये त्योहार।।
8-
जली बुराई सारी, सारे पाप।
होली हर लेती है, सब संताप।।
9-
होली है रंगों का, पावन पर्व।
हर भारतवासी को, इस पर गर्व।।
10-
होली में मिट जाता, मन का बैर।
सबसे सब मिल पूछें, सबकी खैर।।
11-
होली में करते हैं, सभी धमाल।
गले लगाकर मलते, रंग गुलाल।।
12-
बजते झांझ मँजीरे, ढोल मृदंग।
भर-भर कर पिचकारी, डालें रंग।।
13-
साली फैलाती है, अपना जाल।
जीजा को वह रगड़े,रंग गुलाल।।
14-
होली का भी होता, एक जुनून।
लेकिन साली बिन है, होली सून।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब।
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छे छन्द लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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