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जीवन हो जिसका संत सा गुणगान कीजिए
शठ से हों कर्म उसका ढब अपमान कीजिए।१।
साड़ी शराब ले न अब मतदान कीजिए
लालच को अपने, देश पर कुर्बान कीजिए।२।
करता है जो भी भीख का वादा चुनाव में
जूतों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।३।
कुर्सी को उनकी और मत साधन बनो यहाँ
वोटर हो अपने वोट का कुछ मान कीजिए।४।
मंशा है जिनकी राज हित जनता को बाँटना
बँटकर न उनकी राह को आसान कीजिए।५।
जुड़ता कहाँ है देश गर टूटा अगर कहीं
तैयार बाँटने का मत सामान कीजिए।६।
सेकेंगे ये तो रोटियाँ नफरत की आग पर
बातों पे इनकी आप मत अब ध्यान कीजिए।७।
फिरकों में बँटना बाँटना तहजीब में नहीं
हो गर किसी की सोच तो श्मसान कीजिए।८।
सुंदर मुखौटे ओढ़कर दीमक बने हैं जो
उन छद्म पहरूओं की अब पहचान कीजिए।९।
इस बार चुनके भेजकर काबिल सदन में सब
जनता वतन पे आप भी अहसान कीजिए।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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Comment
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा व स्नेह के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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