राजनीति - लघुकथा -
आज शहर में देश के जाने माने और सबसे बड़े नेता जी की चुनावी रैली थी। समूचा शहर उमड़ पड़ा था। हर तबके और हर समुदाय के लोग मौजूद थे। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी लोगों ने नेता जी से बड़ी आशायें लगा रखी थीं।
एक तो पहले ही नेताजी तीन घंटे देरी से आये। धूप और गर्मी से लोग परेशान थे। मगर फिर भी सब डटे हुए थे क्योंकि अधिकाँश लोग तो पैसे लेकर सभा में आये थे। बचे हुए लोग भविष्य में कुछ मिलने की आशायें लगाये थे। नेताजी ताबड़तोड़ डेढ़ घंटे अपना चिर परिचित भाषण देकर चले गये।
जिसका विश्लेषण सभा स्थल पर संध्या कालीन भ्रमण करते हुये एक परिवार ने कुछ इस प्रकार किया।
"बापू, ये नेताजी तो बहुत उस्ताद निकले। इस बार कोई नयी घोषणायें नहीं की।"
"बेटा, अभी पिछले चुनाव की सभी घोषणायें ज्यों की त्यों पड़ी हैं।"
"ये अपने विरोधियों को इतना गरियाते क्यों हैं?"
"जब किसी के पास अपने कार्यों का बखान करने को कुछ नहीं होता तो ऐसे ही तरीके प्रयोग करते हैं।"
"तो फिर ऐसे लोग जीत कैसे जाते हैं?"
"ये लोग साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाते हैं।"
"वह क्या होती है?"
"इस नीति के अंतर्गत ये लोग सब तरह के हथकंडे अपनाते हैं। कुछ तो इनके अंध भक्त होते हैं। शेष को ये लोग धन और अन्य वस्तुओं का लालच देकर खरीदते हैं। जो इस लालच में नहीं आते, उनको धमकी देते हैं। जो इस पर भी अडिग रहते हैं, उन्हें हमेशा के लिये शाँत कर देते हैं।"
"इसका मतलब ये लोग तो बहुत ही खतरनाक हैं।"
"अब तुम सही समझे।"
"बापू, आप अभी अपने समाज के अध्यक्ष हो।अपनी सोसाइटी के सेक्रेटरी हो।कालेज के दिनों में छात्र संघ के महा सचिव रहे थे। आप भी एक बार देश की राजनीति में भाग्य आजमाओ ना?"
"नहीं बेटा, अब यह शरीफ़ लोगों के वश का काम नहीं है।"
मौलिक , अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। आदाब।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब, संदेश देती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आपका सुझाव विचारणीय है।प्रयास करूंगा।
लघु कथा में कटाक्ष बहुत ही अच्छा बना है। बधाई, आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
आदाब।.बढ़िया समसामायिक प्रवाहमय कटाक्षपूर्ण रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। मुझे ऐसा लगा कि आरंभिक दोनों अनुच्छेदों को कुछ कम शब्दों में कहा जा सकता है।
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