"माई, अपने घर में एक मोटी पुस्तक थी। रामायण । उसमें से तूने एक प्रसंग सुनाया था कि एक केवट था जो राम चंद्र जी को नाव में इसलिये नहीं बिठा रहा था कि उनके पैरों की धूल से उसकी नाव कहीं सुंदर स्त्री ना बन जाय अतः वह उनके पैर पखारने के बाद ही नाव में बैठाने की शर्त रखा था।"
"हाँ बेटा, रामायण में लिखा तो यही है। क्योंकि भगवान राम की चरण रज़ से एक पत्थर की शिला स्त्री बन गयी थी।"
"क्या सचमुच ऐसा संभव हुआ था?"
"हुआ तो ऐसा ही था मगर वह तो एक श्राप के कारण हुआ था।"
"कैसा श्राप माई?"
"देवी अहिल्या को उनके पति ने उनके चरित्र पर शक़ के कारण स्त्री से पत्थर बना दिया था। उसका उद्धार भगवान राम जी की चरण रज से ही होना था"
"तो क्या यह बात उस केवट को पता नहीं थी?"
"पता थी तभी तो उस बात का वह लाभ लेना चाह रहा था?"
"कैसा लाभ माई?"
"श्री राम चंद्र जी के पैर पखारने का तो मात्र बहाना था| केवट की वास्तविक इच्छा तो भगवान राम के चरण स्पर्श करने की थी, जिससे उसके समस्त पाप धुल जांय।"
"यानी कि यह पैर पखारने की राजनीति आदि काल से प्रचलित है।"
"क्या मतलब है तेरा?"
"छोड़ ना माई, तू नहीं समझ पायेगी यह नौटंकी।"
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
बेहतरीन रचना की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी। लघुकथा पर आने और उसे अपना समर्थन देने हेतु शुक्रिया।
हार्दिक आभार आदरणीय सलीम रज़ा रीवा जी। आपकी विस्तृत टिप्पणी मेरे लिये बेहद उत्साह जनक है।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
वाह जी वाह आदरणीय लघुकथा के माध्यम से अच्छा कटाक्ष किया है..
वाह वाह अदरणीय तेज वीर सिंह जी
यानी कि यह पैर पखारने की राजनीति आदि काल से प्रचलित है।"
"क्या मतलब है तेरा?"
"छोड़ ना माई, तू नहीं समझ पायेगी यह नौटंकी।"
मुबारकबाद
आखिर नीतियां, रणनीतियां, राजनीतिक दांव-पेंच सबकुछ युग दर युग हस्तांतरित होते आए हैं ।बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय तेजवोर सरजी ।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
रामायण पर आधारित प्रसंग को राजनीति से जोड़कर सुंदर कथा का रूप दिया है।शीर्षक भी कथा के साथ उपयुक्त है बधाई आपको आद० तेजवीर सिंह जी ।
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