समाधान - लघुकथा -
युद्ध, युद्ध, युद्ध करो,
हमें केवल युद्ध चाहिये। दुश्मन को मसल दो। उसे कुचल दो। बरबाद कर दो।
ऐसी आवाज़ों से आसमान गूंज रहा था।
इन आवाजों को सुनकर नेता जी का मस्तिष्क फटा जा रहा था। इन आवाजों का स्वर और प्रवाह इतना तेज और उत्तेजित करने वाला था कि नेताजी अपने दैनिक क्रिया कलापों पर एकाग्र नहीं कर पा रहे थे।
दूसरी ओर उनकी आँखों के आगे पिछले युद्ध की विभीषिका स्पष्ट झलक रही थी।घायल सैनिकों की चीत्कार भरी पुकार और कराहने के दर्द भरे स्वर। उनके शोक संतप्त परिवारों के सिसकते चेहरे। छोटे छोटे बच्चों की अनाथ होने की पीड़ा और उससे उपजा क्रंदन एवम हाहाकर।
नेताजी ने आनन फानन में शीर्ष सैन्य अधिकारियों और युद्ध से संबंधित विशिष्ट मंत्रियों की आपातकालीन बैठक बुलायी।
"देश के वर्तमान हालात पर आप लोग विस्तार से और बेबाकी से अपनी अपनी राय दीजिये?"
सभी मंत्रियों ने एक मत होकर कहा,"माननीय, प्रजातंत्र में जनता जनार्दन ही सर्वोपरि है और जनता युद्ध की माँग कर रही है।अतः इन हालात में केवल युद्ध ही विकल्प है।"
अब सैन्य अधिकारियों की बारी थी,"सर , अगर हम एक सैनिक की तरह सोचें तो युद्ध हमारा धर्म भी है और कर्तव्य भी। अतः इसके लिये हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिये।लेकिन युद्ध शुरू करने से पहले उसके परिणाम, उसकी अनिश्चितता, देश की अर्थ व्यवस्था और सैन्य शक्ति का अवलोकन एवम आँकलन भी अनिवार्य है।बाहर जो लोग युद्ध युद्ध चिल्ला रहे हैं इनमें अधिकांश व्यापारी, दलाल और छुट भैये नेता हैं जो कि युद्ध में काला बाज़ारी करके खूब पैसा कमाते हैं।"
नेताजी शीघ्र किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहते थे।अचानक नेताजी तेजी से उठे और युद्ध के नारे लगाने वाली भीड़ में जा पहुचे।"आप लोग दो भाग में बंट जांय।जिनके परिवार का कोई भी सदस्य सेना में कार्य रत है, वे दायीं तरफ़ और शेष बांयीं तरफ़।"
अधिकांश लोग बांयी तरफ़ थे ।
नेताजी ने बांयी तरफ के लोगों को वहाँ से जाने को कह दिया,"आप लोगों की राय महत्वहीन है। मेरे लिये उन लोगों की राय जानना अनिवार्य है क्योंकि ये लोग युद्ध की दोहरी मार झेलेंगे। एक बॉर्डर पर और दूसरी परिवार में ।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।आपकी उत्साह वर्धक टिप्पणी ने मेरी विचारधारा का समर्थन तो किया ही है साथ ही मुझे एक आत्मिक एवम मानसिक बल भी प्रदान किया है।पुनः आभार।
युद्ध किसी समस्या का समाधान नही होता है।देश और जनता प्रभावित होती है।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
बहुत बढ़िया ढंग से आपने अपने विचार रखें हैं लघुकथा में आदरणीय..बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।सदैव की भाँति आपकी टिप्पणी बेहद उत्साह बर्धक, प्रेरक एवम सकारात्मक सोच उत्पन्न करने वाली है।
आदाब। बेहतरीन सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
//युद्ध की दोहरी मार// से सब कुछ स्पष्ट है। रचना में युद्ध की मांग का समाधान अनकहे में है!
"युद्ध की मांग" नेता की नज़र में महत्वहीन है हालात अनुसार। पूरे संवादों पर ग़ौर कर यही कहूंगा कि लेखक का कथ्य, रचना का भाव व सार्थक संदेश यथावत रहे, तो बेहतर मेरे विचार से।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब ।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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