देहलीज़ - लघुकथा -
दिल्ली में जनवरी की कयामत की सर्दी वाली रात। रात के ग्यारह बजे के लगभग घर की डोर बेल बजी। घर में दो बुजुर्ग प्राणी। दोनों ही सत्तर पार। आमतौर पर नौ बजे तक रजाई में घुस जाते थे। गहरी नींद में थे। बार बार घंटी बजी तो शर्मा जी की आँख खुली तो उठकर द्वार खोलने चल दिये। खटर पटर की आवाज से तथा लाइट जलने से मिसेज शर्मा भी आँख मलते हुए उठ बैठी।
"सुनो जी, तुम रुको, मैं खोलती हूँ।"
वे थोड़ी मजबूत थीं। शर्मा जी दुबले पतले और बीमार भी थे। वे रुक गये। मिसेज शर्मा ने डरते डरते द्वार खोला।
सामने उनकी इकलौती बेटी सपना खड़ी थी।
"सपना, तू इतनी रात में, वह भी अकेली बिना सामान?"
"माँ, मैं बर्बाद हो गयी। रमेश धोखेबाज़ निकला।"
"हुआ क्या यह तो बता?"
"आज उसने अपने बॉस को खाने पर बुलाया था। उसके बॉस ने शराब के नशे में मुझे पकड़ लिया। मैंने उसे धक्का मार दिया। वह गिर पड़ा। रमेश ने मुझ पर हाथ उठा दिया और मुझे बॉस के साथ सोने को मजबूर करने लगा। बड़ी मुश्किल से भाग कर आई हूँ।"
"अब यहाँ क्या लेने आई हो। कितना मना किया था। तुम्हारे सिर पर तो प्यार का भूत सवार था। हमारे विरुद्ध जाकर एक छोटी जाति वाले से कोर्ट मेरिज की। अब भुगतो।"
इतना बोल कर मिसेज शर्मा द्वार बंद करने लगीं।
सपना ने रोते हुए माँ के पैर पकड़ लिये,"माँ मुझे क्षमा कर दो। मेरा और कौन है इस दुनियाँ में।"
"बिटिया, यह सब पहले सोचना था। हम लोग कुलीन ब्राह्मण हैं। समाज में थोड़ी बहुत इज्जत है| एक बार तुम अपनी मर्जी से यह देहरी लाँघ गयी। हमारी इज्जत को खूब चार चाँद लगा गयीं| अब बची खुची इज्जत को पलीता लगाने फिर आ गयी। ना बाबा, हमको माफ़ करो। अब इस देहरी में घुसने का हक़ खो चुकी हो तुम ।"
"माँ तुम इतनी कठोर कब से हो गयी?"
"जब से बिटिया माँ को ठुकरा कर चली गयी। अब जाओ यहाँ से। डूब मरो किसी नदी तालाब में।"
माँ बेटी के वार्तालाप से ऊब चुके शर्मा जी झल्ला पड़े ,"जरा सी बात का क्यों बतंगड़ बना रही हो? जो हो गया उस पर मिट्टी डालो | आने दो उसे अंदर। अब यही उसका घर है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय Mahendra Kumar जी।
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।
अच्छी लघुकथा है आदरणीय तेज वीर सिंह जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें
हार्दिक आभार आदरणीय फूल सिंह जी।
"तेजवीर साहब " सच्चाई को उजागर करती एक सूंदर रचना, बधाई स्वीकारें
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
बहुत ही अच्छी लघु कथा लिखी है। बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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