बहाव को रोकने के लिये किसी भी प्रकार के बंध या बंधन काम नहीं आ पा रहे थे। तेज बहाव के बीच एक टीले पर कुछ नौजवान अपनी-अपनी क्षमता और सोच अनुसार विभिन्न पोशाकें पहने, विभिन्न स्मार्ट फ़ोन, कैमरे और दूरबीनें लिए हुए बहती तेज धाराओं के थमने या थमाये जाने; बचाव दल के आने या बुलवाये जाने; नेताओं, मंत्री, यंत्री, धर्म-गुरुओं अथवा विशेषज्ञों के दख़ल करने या करवाने के भरोसे, प्रतीक्षा और शंका-कुशंकाओं के साथ माथापच्ची करते हुए एक-दूसरे के हाथ थामे खड़े हुए थे। कोई तटों की ओर देख रहा था, तो कोई आसमां की ओर!
बहुत ही तेज़ धाराओं के साथ भयंकर बहाव जल का था, वैश्वीकरण का, आधुनिकता का, उच्च तकनीकों-डिजीटलीकरण का था या लोकतांत्रिक व्यवस्था का था या अलोकतांत्रिक का या सामंतवाद, आतंकवाद, नशाखोरी, तानाशाही या कट्टरपन, योजनाओं अथवा बड़बोलेपन या धर्मांधता का! जो भी हो; नौजवानों के लिए रोमांचक था, चुनौती था, आनंददायक था या रोबोटिक अहसास था। टीला भी कोई विकास था, उच्च ओहदा या मुकाम था; लक्ष्य था या दिवास्वप्न था! बंध या बंधन कोई उच्च तकनीक का बांध था या भ्रष्टाचार; बेरोज़गारी थी, अशिक्षा थी, उच्च शिक्षा थी या परिवार या समाज या धर्म था; नीति थी, आदर्श थे, पाखंड या अंधविश्वास था! जो कुछ भी हो! नौजवान हैरान-परेशान से थे। कुछ युवक थे, कुछ युवतियां थीं! तो कुछ थर्ड-जेंडर या समलैंगिक! कुछ एक बहुत ग़रीब थे, तो कुछ बहुत अमीर और अधिकतर तो मध्यम वर्ग के ही थे! लगभग ऐसे ही दृश्य तटों पर भी थे। ये तट स्थायी रोज़गार थे या अस्थायी; जुगाड़ थे, उद्योगपतियों के व्यापार थे या राजनीति या धर्म के ठोस स्तंभ; पैतृक धन-सम्पत्ति थी या देश की सम्पदा! जो कुछ भी हो! नौजवानों को उन पर अटूट विश्वास था!
तेज़ धाराओं के बहाव के बीच टीले वालों और तट वालों के बीच स्मार्ट फ़ोनों आदि से सम्पर्क बना हुआ था। चर्चाएं जारी थीं। वादे किये जा रहे थे। रेस्क्यू ऑपरेशन की संभावनाएं कभी बढ़ रहीं थीं, तो कभी कम हो रहीं थीं।
कुछ जोशीले युवा जो तैरना जानते थे, बेसब्री से लहरों में कूंद गये। उनमें से कुछ तट पा गये, तो कुछ मौत! सब्र रखते हुए ढलती शाम में भी शेष युवा चुनौतियों को स्वीकार कर रहे थे संभावित नतीज़ों की कल्पनाओं में खोये हुए अपने-अपने फ़ैसले या चुनाव पर चिंतन-मनन कर रहे थे।
"देखो, किसी दमदार मंत्री से सम्पर्क करो या उद्योगपति से या फ़िर किसी दलाल या बड़ी पहुंच वाले आतंकी से! कोशिश करो हमारे रेस्क्यू की किसी न किसी जुगाड़ से!" टीले पर खड़े एक दमदार युवा ने फ़ोन पर तट पर खड़े एक बड़े नेता से कहा।
"हम कोशिश कर रहे हैं बारी-बारी से उन सभी लिंक्स का चयन करके! चुनाव का समय है। कोई न कोई तो पहल करेगा ही! जस्ट वेट!" दूसरी तरफ़ से जवाब आया।
शेष नौजवान वार्तालाप या ऑनलाइन-चैटिंग सुन रहे थे; या स्मार्ट फ़ोनों पर समाचारों के अपडेट्स सुन या देख रहे थे; सपने बुन रहे थे। कुछ ज़िन्दगियाँ ऑनलाइन थीं; कुछ ऑफ़लाइन! धैर्य और इंतज़ार के चुनाव की विवशता थी!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदाब। मेरी इस रचना पर भी समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और मुझे यूं प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार साहिबा।
फिर कोई उपाय भी नही था जीवन बचाने की विवशता थी ,आनलाइन,आफलाइन बस मूकदर्शक थे विवशता ऐसी भी ।बधाई कथा के लिये आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदाब। मेरी इस रचना के अवलोकन और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब, आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब और आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, सीख देती उम्दा लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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