(1).चेतना :
ग़ुलामी ने आज़ादी से कहा, "मतदाता सो रहा है, उदासीन है या पार्टी-प्रत्याशी चयन संबंधी किसी उलझन में है, उसे यूं बार-बार मत चेताओ; हो सकता है वह अपने मुल्क में किसी ख़ास प्रभुत्व या किसी तथाकथित हिंदुत्व या किसी इमरजैंसी के ख़्वाब बुन रहा हो!"
आज़ादी ने उसे जवाब दिया, "नहीं! हमारे मुल्क का मतदाता न तो सो रहा है; न ही उदासीन है और न ही किसी उलझन में है! उसे चेताते रहना ज़रूरी है! हो सकता है कि वह तुष्टीकरण वाली सुविधाओं, योजनाओं, क़ानूनों से आज़ादी का मतलब भूल गया हो या सही उड़ान भरना भूल गया हो या ख़ुद को कठपुतली समझने लगा हो!"
(2).जनता ही तो :
आज़ादी ने लोकतंत्र से कहा, "तुम जनता के, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन रूप में पहचाने जाते हो; लेकिन हो ये रहा है कि व्यापारी-उद्योगपतियों के, उनके ही लिये, उनके ही द्वारा तुम हांके जा रहे हो!"
लोकतंत्र ने उसे जवाब दिया, "नहीं! मैं अब भी उसी रूप में परिभाषित, प्रचलित व स्थापित हूँ! इस सदी में जनता ही व्यापारी है; सौदागर है; उद्योगपति है! कोई लघुत्तम, तो कोई मध्यम और कोई बहुत ही बड़ा विश्वस्तरीय!"
(3).अस्तित्व :
लोकतंत्र ने ग़ुलामी से कहा, "मैं इस मुल्क में शताब्दी की ओर बढ़ रहा हूँ! अब भी मुझे संशय है कि मुल्क की जनता आज़ादी में मेरे साथ अधिक सुखी है या तुम्हारे दिनों में ज़्यादा सुखी थी?"
ग़ुलामी ने उसे सैल्यूट करते हुए जवाब दिया, "आयुष्मान भव; यशस्वी भव! ग़ुलामी के दिनों में कुछ एक ग़ुलाम ही अधिक सुखी थे और आज़ादी के दिनों में तुम्हारे साथ कुछ एक लोग ही ज़्यादा सुखी हैं बस; शेष नहीं! ... लेकिन मेरे समय में उन शेष के कारण ही मुल्क ने आज़ादी पाई और अब तुम्हारे समय में इन शेष के कारण ही तुम्हारा अस्तित्व है!"
(4).असंतुष्टि :
आज़ादी ने ग़ुलामी से कहा, "हमारे मुल्क के लोगों को मैं या तो रास नहीं आ रही या वे मुझे सही ढंग से समझ ही नहीं पा रहे हैँ! लोकतंत्र क़ायम है, पर संतुष्ट नहीं! सतत तुष्टिकरण के बावजूद जनता संतुष्ट नहीं!"
ग़ुलामी ने उसे सैल्यूट करते हुए कहा, "आयुष्मान भव; यशस्वी भव! तुम रास तो सब को आ रही हो! लोग तुम्हें समझ भी रहे हैं! कुछ अलोकतांत्रिक असंतुष्टों की वजह से तुम पर और लोकतंत्र पर लोग उंगलियां उठाते हैं; चोटिल करते और करवाते हैं!"
(5) ख़तरा :
आज़ादी ने जनता से कहा, "तुम्हारे द्वारा चलाया जा रहा लोकतंत्र विशाल और परिपक्व होते हुए भी ख़तरे में बताया जा रहा है! जागो और जगाओ! अबकी चुनाव में लोकतंत्र बचाओ!"
जनता ने उसे जवाब दिया, "ख़तरे में न लोकतंत्र है और न ही हम! ख़तरे में तो कुछ नेता हैं और उनके राजनैतिक दल, बस!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदाब। मेरे इस भिन्न अभ्यास पर.समय देकर अवलोकन करने और.मुझे टिप्पणी द्वारा यूं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहिब। सभी व्यूअर्स को हार्दिक धन्यवाद।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथाएं हुईं,बधाई स्वीकार करें ।
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