नैन पर चंद दोहे :
नैन नैन में हो गई, अंतर्मन की बात।
नैन गाँव को मिल गयी, सपनों की सौग़ात।।
रीत निभा कर प्रीत ने, दिल पर खाई चोट।
आँस न स्रावित हो सकी, थी पलकों की ओट।।( आँस=वेदना )
नैन झुके तो शर्म है, नैन उठें बेशर्म।
नैन जानते नैन के, कैसे होते कर्म।।
नैन बड़े बेशर्म हैं ,नैनों का क्या धर्म।
प्रीत सयानी जानती, प्रीत नैन का मर्म।।
नैन नैन को भेजते,अंतस के सन्देश
बिना दरस के नैन को, लगता ज्योँ परदेस।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय narendrasinh chauhanजी सृजन पर आपकी मन मुग्ध करती प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय Hariom Shrivastavaजी सृजन पर आपकी मन मुग्ध करती प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन पर आपकी मन मुग्ध करती प्रशंसा का दिल से आभार।
बहेतरीन , सुशील सरना जी सादर अभिवादन
वाह,वाहह,नैनो पर अति सुंदर दोहे।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन दोहे सृजित किये आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये। विशेषतः इस दोहे ने मन मोह लिया....
नैन नैन को भेजते,अंतस के सन्देश
बिना दरस के नैन को, लगता ज्योँ परदेस।।
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