For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ा ढूंढते हो जफ़ा के नगर में यहाँ पर वफ़ा अब बची ही कहाँ है (४५ )

(१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ )

.

वफ़ा ढूंढते हो जफ़ा के नगर में यहाँ पर वफ़ा अब बची ही कहाँ है 
बुझी है वफ़ा की मशालें दिलों से वफ़ा का नहीं कोई नाम-ओ-निशाँ है 
**
यहाँ राज करते हवस के पुजारी किसी की नहीं है मुहब्बत से यारी 
इधर बेवफ़ाओं का लगता है मेला कोई बावफ़ा अब न मिलता यहाँ है 
**
इधर पैसा फेंको दिखेगा तमाशा अगर जेब ख़ाली मिलेगी हताशा 
इधर है न रिश्ता न कोई सगा है फ़क़त पैसा होता धरम और इमाँ है 
**
यहाँ नाम-लेवा वफ़ा का न कोई वफ़ा की यहाँ सबने उम्मीद खोई 
सजी है दुकानें यहाँ जिस्म की बस मुहब्बत की कोशिश हर इक रायगाँ है 
**
यहाँ महफ़िलों में गज़ब खीरगी है दिलों में समाई मगर तीरगी है 
यहाँ अश्क देखे कहाँ है किसी ने लबों पर हँसी और दिल में फुगाँ है 
**
यहाँ रास आती बदन की फ़रोशी मगर दर्द देती दिलों की ख़मोशी 
यहाँ दिन उदास और दिलकश है शामें यहाँ रात रोज़ाना होती जवाँ हैं 
**
अलग ये बसाई शरीफों ने दुनिया यहाँ लाई जाती किसी घर की मुनिया 
फँसा इस क़फ़स में अगर इक परिंदा यहीं उसका घर है यहीं कारवाँ है 
**
बने औरतों के लिए जो इदारे सभी कागजों में मुक़द्दर सँवारे 
मगर ये निज़ामत नहीं ग़ौर करती इसे फ़िक्र औरत की रहती कहाँ है 
**
खुले आम घूमें 'तुरंत' अब शिकारी कई बागबाँ बेचे कलियाँ कुँवारी 
वतन है हमारा अब आज़ाद लेकिन पुरानी रिवायत जहाँ की तहाँ है 
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी | 
३१/०५/२०१९

शब्दार्थ -रायगाँ =बेकार ,खीरगी=चकाचौंध ,तीरगी=अँधेरा 
फ़ुग़ाँ =आर्तनाद ,इदारे=विभाग /संस्थाएं ,निज़ामत=व्यवस्था ,रिवायत =प्रथा

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 1, 2019 at 6:15pm

 गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | सादर नमन | तक़बूले रदीफ़ संज्ञान में तो था लेकिन शिल्प की दृष्टि से इस लम्बी बह्र में इग्नोर किया क्योंकि मुझे तीरगी को  खीरगी से मिलाना था | वैसे अहमद फ़राज़ जैसे शायर ये मानते हैं कि तक़बूले रदीफ़ के लिए स्वर को देखना चाहिए उस दृष्टि से तीरगी है और फुगाँ है में अलग स्वर है | लेकिन आपकी बात को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर रहा हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 1, 2019 at 12:57pm

आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ स्वीकार करें | पांचवे शेर में तकाबुले रदीफ  दोष आ गया है .. संभव  हो तो देख लीजिएगा |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service