कैसे होते हैं फ़ना प्यार निभाने के लिए
छोड़ जाऊंगा नज़ीर ऐसी ज़माने के लिए
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रूह का हुस्न जिसे दिखता वही आशिक़ है
जिस्म का हुस्न तो होता है लुभाने के लिए
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दरमियाँ गाँठ दिलों के जो पड़ी कब सुलझी
कौन दीवार उठाता है गिराने के लिए
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अच्छे लोगों की कमी रहती है क्या जन्नत में
क्यों ख़ुदा उनको है तैयार बुलाने के लिए
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आग को देना हवा काम बचा लोगों का
कोशिशें कोई न करता है बुझाने के लिए
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दाँत खाने के जुदा जिनके दिखाने के जुदा
लोग ऐसे हैं ख़तरनाक ज़माने के लिए
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दिन ब दिन और हुए जाते हैं हालात बुरे
कौन आता है ग़रीबों को बचाने के लिए
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अपने हिस्से के ग़मों को तुझे सहना है 'तुरंत'
दूसरा कौन है ये बोझ उठाने के लिए
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
vijay nikore साहेब बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफजाई के लिए |
गज़ल अच्छी लिखी है। बधाई गिरधारी सिंह जी
बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें आदरणीय Samar kabeer साहेब
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'किस तरह होते फ़ना प्यार निभाने के लिए'
इस मिसरे को यूँ कर लें,इसमें 'हज़फ़-ए-लफ़्ज़ का ऐब है:-
'कैसे होते हैं फ़ना प्यार निभाने के लिए'
'उम्र लग जाती हैं बुनियाद लगाने के लिए'
इस मिसरे में 'बुनियाद' के साथ 'लगाने' की तरकीब दुरुस्त नहीं,विचार करें ।
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