ताज़ा गर दिल टूटा है तो वक़्त ज़रा दीजै
क़ायम रखना रिश्ता है तो वक़्त ज़रा दीजै
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सिर्फ़ शनासाई से होता प्यार कहाँ मुमकिन
इश्क़ मुक़म्मल करना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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पहले के दिल के ज़ख़्मों का भरना है बाक़ी
ज़ख़्म नया गर देना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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ख़्वाब कभी क्या बुनने से ही होता है कामिल
पूरा करना सपना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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जल्दी के सब काम हमेशा शैताँ के होते
इन्सां बनकर रहना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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काम तमाम तरह के शायद ही पीछा छोड़ें
ख़ुद को ख़ुद से मिलना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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सार-सँभाल बिना मर जाते बच्चे हों या पौध
इनको रखना ज़िंदा है तो वक़्त ज़रा दीजै
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यार ख़ुमार-ए-इश्क़ उतरता धीरे धीरे ही
और बुख़ार ज़ियादा है तो वक़्त जरा दीजै
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दीद 'तुरंत' नदी की करलें उतरें मत उसमें
गहराई में जाना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'बीकानेरी
१२ /०६/२०१९
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
Rakshita Singh जी रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन |
आदरणीय गिरधारी जी नमस्कार,
काम तमाम तरह के शायद ही पीछा छोड़ें
ख़ुद को ख़ुद से मिलना है तो वक़्त ज़रा दीजै ।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ बहुत बहुत बधाई ।
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