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इच्छाओं का भार नहीं धर----ग़ज़ल

22 22 22 22

इच्छाओं का भार नहीं धर
रिश्तों के नाज़ुक धागों पर

पोषित पुष्पित होंगे रिश्ते
हठ मनमानी त्याग दिया कर

ऊर्जा से परिपूर्ण रहेगा
खुद में शक्ति सहन की तू भर

करनी का फल सन्तति भोगे
सो कुकर्म से ए मानव डर

देख निगाहें घुमा-फिरा के
कौन नहीं फल भोगे यहाँ पर

अब वैज्ञानिक भी कहते हैं
पाप-प्रलय-भय तू मन में भर

गा कर, लिख कर, यूँ ही पंकज
हर मन से अवसाद सदा हर

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 22, 2020 at 5:20pm

आदरणीय बाउजी समर कबीर आदरणीय अग्रज सौरभ पांडे जी आप दोनों का भी इस गजल को आशीर्वाद नहीं मिला 

कृपया ध्यान दे...

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