For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये भँव तिरी तो कमान लगे----ग़ज़ल

12112 12112

ये भँव तिरी तो, कमान लगे

तिरे ये नयन, दो बान लगे

कहीं न रुके, रमे न कहीं

इसे तू ही तो, जहान लगे

मैं जब से मिला हूँ तुम से, मिरी

हरेक अदा जवान लगे

अमिय है तिरी अवाज़ सखी

तू गीत लगे है गान लगे

है खोजती महज़ तुझे ही निगा'ह

न और कहीं मिरा धियान लगे

मौलिक अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 14, 2019 at 9:43pm

आदरणीय बाऊजी इस ग़ज़ल को सुधारता हूँ, शीघ्र ही

Comment by नाथ सोनांचली on July 12, 2019 at 3:44pm

आद0 पंकज कुमार मिश्र जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये। शेष आद0 समर साहब की इस्लाह तो बाकमाल

Comment by Samar kabeer on July 11, 2019 at 11:55am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,बह्र-ए-वाफ़िर में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी कुछ कमियाँ हैं,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

'ये भँव तिरी तो, कमान लगे

तिरे ये नयन, दो बान लगे'

ऊला मिसरे में एक ही भँव का ज़िक्र है,दूसरी कहाँ है?

सानी मिसरे में 'नयन' "दो बान" बहुवचन हैं इसलिए रदीफ़ 'लगे' कि बजाय "लगें" हो रही है ।

'कहीं न रुके, रमे न कहीं

इसे तू ही तो, जहान लगे'

"किसे"?,इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है ।

'अमिय है तिरी अवाज़ सखी'

इस मिसरे में 'अवाज़' ग़लत है,सहीह शब्द है "आवाज़",देखियेगा ।

'है खोजती महज़ तुझे ही निगा'ह

न और कहीं मिरा धियान लगे'

इस शैर के ऊला में "महज़" शब्द का वज़्न 21 है,और सानी में "ध्यान" शब्द को 'धियान' करना कहाँ तक उचित है,आप बहतर समझते हैं ।

एक काम की बात,ग़ज़ल का प्रयास जल्द बाज़ी में कभी नहीं करना चाहिए,इसका हमेशा ख़याल रखें ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 10, 2019 at 10:04pm
आदरणीय तिवारी जी बहुत आभार
Comment by indravidyavachaspatitiwari on July 10, 2019 at 4:16am

बहुत बढ़िया गजल है। मन प्रसन्न हो गया। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service