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मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ-----ग़ज़ल

122 122 122 12

मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ
सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ

किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो
महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ

जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो
तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ

अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे
ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ

उन्हें सच से जिसने न पोषित किया
उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2019 at 3:53pm

आदरणीय सतविंदर भाई बहुत बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2019 at 3:53pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम सहित आभार। सब आपके सुझावों की देन है

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 11, 2019 at 10:15pm

आदरणीय पंकज भाई उम्दा गजल सृजित हुई। हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on July 11, 2019 at 2:35pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

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