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मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ
सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ
किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो
महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ
जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो
तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ
अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे
ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ
उन्हें सच से जिसने न पोषित किया
उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सतविंदर भाई बहुत बहुत आभार
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम सहित आभार। सब आपके सुझावों की देन है
आदरणीय पंकज भाई उम्दा गजल सृजित हुई। हार्दिक बधाई
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
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