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शरणार्थी (लघुकथाएं )

शरणार्थी

(1)
---
दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे;एक मानवतावादी था, दूसरा समाजवादी।पहले ने कहा-
अरे भई!वो भी आदमी हैं,परिस्थिति के मारे हुए।बेचारों को शरण देना पुण्य-परमार्थ का काम है।
दूसरा:हाँ तभी तक,जबतक यहाँ के लोगों को शरणार्थी बनने की नौबत न आ जाये।


(2)
---
-हाँ,जुझारूपन हमारे खून में है।
-हमारी खातिर तुम क्या करोगे?
-जान भी दे सकते हैं।
-हमें वोट चाहिए।जान तो सस्ती जिंस है।
-ऊपरवाले की कसम जो कहेंगे,हम करेंगे।
-कितने हो तुमलोग?
-अभी दस हजार।हुक्म मिलने पर लाखों की तादाद होगी।
-ठीक है।रात के अँधेरे में घुस आना।पुलिस बस्तियों में गश्त लगायेगी',मंत्री-प्रतिनिधि बोला।
-जय हो',जेहादी जत्थेदार ने नारा बुलंद किया।

(3)
---
-ताई।
-बोलो बबुआ।
-इतनी सुबह,इतने ताऊ?कहाँ से आ गए?कल तक तो नहीं थे।
-रात ने अंडे दिए हैं बचवा।
-मतलब?
-भोले हो।पड़ोस के मुल्क के अपने दोस्त हैं
-अपने यहाँ दोस्त कम थे क्या, तइया?
-नहीं।लेकिन घर के मीत समय के साथ खुन्नस पालने लगते हैं।
-और बाहर वाले?',पप्पू बोला।
-अपने भर ही सही,साथ तो देंगे',ताई खद्दर की साड़ी के पल्लू में मुँह ढाँपकर मुस्कुराई।
@

 

(4)
--
नयी बस्ती बसाई गयी।वीरान-सुनसान चौंर रजगज हो चला ।कल तक जहाँ रात में सियार फेंकरते थे,वहाँ आज बिजली के बल्ब नजर आ रहे थे। अकलू-बकलू टहलते हुए उधर से गुजरे।नजारा देखकर चौंक गए।अकलू बोला, 'मंत्रीजी ने वाकई ईमानदारी से इन्हें बसाया है।'
-पड़ोस के ईमान हैं ये सब।कुछ दिन तो निभा ही देंगे',बकलू बोला।
-अगले साल चुनाव है।फिर देखा जायेगा',अकलू ने कुरेदा।
-हाँ रे, झोपड़ियों का बनना और जलना तो चलता ही रहता है',बकलू ने चुटकी ली।
@

(5)
---
-कोई कोई तारीख ढाँचा ढ़हाने के लिए जानी जाती है।
-सच है।
-और फिर मामले चलते रहते हैं।बरसी मनाई जाती है।
-और  क्या?
-होना क्या है?
-मतलब है कि विध्वंस वीरों को क्या कहा जाय, वाद प्रेरित,धर्म निरपेक्ष या और कुछ.

-कुछ भी।सब सुविधा के लिए गढ़े हुए शब्द हैं।
-सुविधा के लिए?
-और नहीं तो क्या?देखते नहीं ,एक ही करतूत के लिए कोई देश द्रोही,तो कोई देश भक्त कहा जाता है।
-सो तो है।नये- नये नागरिक बने लोग ज्यादातर धर्म निरपेक्ष हुआ करते हैं।
-इसीलिए उन्हें हर तरह की छूट होती है।
-हाँ रे भोला!जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे व्यक्ति परक हैं,भावपरक नहीं',बाबा बोले।
-सच है बाबा।पूजा स्थल पर कलुआ ने बम फेका और गिरफ्तार हुआ अपना .....।समझे ?
-हाँ भई! सब जान गए हैं
@ "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 398

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Comment by Manan Kumar singh on June 11, 2019 at 4:37pm

आभार आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on June 11, 2019 at 12:19pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथाएं लिखीं,बधाई स्वीकार करें ।

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