ताप संताप दोहे :
सूरज अपने ताप का, देख जरा संताप।
हरियाली को दे दिया, जैसे तूने शाप।।
भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज।
वसुधा की काया फटी,ठूंठ बने सरताज।।
वसुंधरा का हो गया, देखो कैसा रूप।
हरियाली को खा गई, भानु तेरी धूप।।
मेघो अपने रहम की, जरा करो बरसात।
अपनी बूंदों से हरो, धरती का संताप।।
तृषित धरा को दीजिये, इंद्रदेव वरदान।
हलधर लौटे खेत में, खूब उगाये धान।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का आभारी है। आपके द्वारा इंगित त्रुटि सही है मैं इसका संशोधन कर पुनः प्रेषित करूंगा। इस हेतु आपका हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि सही है मैं इसका संशोधन कर पुनः प्रेषित करूंगा। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।
बहुत ही सुन्दर दोहे रचे हैं। बधाई सुशील जी।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,गर्मी के मौसम पर अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज'
इस पंक्ति के पहले चरण में 11 मात्राएँ हो रही हैं,देखियेगा ।
'मेघो अपने रहम की, जरा करो बरसात'
आप की जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस पंक्ति के विषम चरण में 'रहम' शब्द का शुद्ध उच्चारण "रह्म" 21 होता है ।
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुंदर रचना आपने सृजित की,बहुत बहुत बधाई
खूब सुन्दर दोहावली सर
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