दूरदृष्टि - लघुकथा -
"क्या हुआ अंशू, देख आया लड़की, कैसी लगी?"
"माँ, मुझे नहीं जमी |मैंने इसीलिये आप से भी साथ चलने को कहा था पर आपने तो टका सा जवाब दे दिया कि शादी तो तुझे ही करनी है| आखिरी फ़ैसला तो तेरा ही होगा, फिर मुझे इस बुढ़ापे में क्यों तंग कर रहा है?"
"पर जब तूने सबके फोटो और बायोडेटा देखे थे तो सबसे अधिक इसे ही प्राथमिकता दी थी|"
"हाँ माँ, उस हिसाब से तो वह अब भी सबसे बेहतर है।"
"अब उन्हें क्या जवाब देकर आया है?।"
"मैंने उन्हें बोला कि माँ से सलाह कर फोन कर दूंगा|"
"कमाल है अंशू, लड़की सुंदर है, सुशील है, पढ़ी लिखी है, नौकरी भी अच्छी है, घरेलू भी है, खानदान भी अच्छा और प्रतिष्ठित है।तो फिर तुझे उससे समस्या क्या है?"
"माँ, मैं उन लोगों द्वारा तय समय पर वहाँ गया तो वह घर पर नहीं थी। लड़की आधे घंटे बाद बाहर से आयी। अजीब सी पोशाक पहन रखी थी। उसकी माँ ने स्पष्टीकरण दिया कि जुडो कराटे की क्लास से आयी है। वह जुडो कराटे सीख रही है।"
माँ ने बड़बड़ाते हुए अंशू से पूछा," तेरे मोबाइल में उसकी माँ का नंबर है। मेरी बात करा।"
अंशू को लगा कि माँ शायद उनको कुछ बुरा भला ना बोल दे अतः थोड़ा बात को संभालने के उद्देश्य से बोला,"छोड़ो माँ, बाद में बात कर लेना।"
"नहीं मुझे अभी बात करनी है।"
माँ को गुस्से में देखकर अंशू ने चुपचाप नंबर मिलाकर मोबाइल पकड़ा दिया। माँ के तेवर देख कर, किसी अनहोनी की आशंका से, पुनः दया याचना की दृष्टि से माँ की ओर देखा। पर माँ की आँखों से निकलती चिंगारियों ने उसे चुप रहने को विवश कर दिया|
अब अंशू भय ग्रस्त माँ की उस वाणी की प्रतीक्षा में था जो उसके वैवाहिक जीवन के भविष्य की आधार शिला रखने वाली थीं
माँ ने बिना कोई भूमिका बनाये सीधे सपाट शब्दों में बोल दिया,"हमको आपकी लड़की पसंद है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।
लघुकथा बहुत ही अच्छी लगी। हार्दिक बधाई, भाई तेज वीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।
खुली सोच का प्रदर्शन करती इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब आदरणीय।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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