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पूछिये मत कि हादसा क्या है ।
पूछिये दिल मेरा बचा क्या है।।
दरमियाँ इश्क़ मसअला क्या है।
तेरी उल्फ़त का फ़लसफ़ा क्या है
सारी बस्ती तबाह है तुझसे ।
हुस्न तेरी बता रजा क्या है ।।
आसरा तोड़ शान से लेकिन ।
तू बता दे कि फायदा क्या है ।।
रिन्द के होश उड़ गए कैसे ।
रुख से चिलमन तेरा हटा क्या है।।
बारहा पूछिये न दर्दो गम ।
हाले दिल आपसे छुपा क्या है ।।
फूँक कर छाछ पी रहा है वो ।
आदमी दूध का जला क्या है ।।
चाँद दिखता नहीं है कुछ दिन से ।
घर पे पहरा कोई लगा क्या है ।।
अश्क़ उतरे हैं तेरी आंखों में ।
ख़त में उसने तुझे लिखा क्या है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ालिब की ज़मीन में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'सारी बस्ती तबाह है तुझसे'
इस मिसरे में तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-
'सारी बस्ती तबाह की तूने'
'रुख से चिलमन तेरा हटा क्या है'
इस मिसरे में 'चिलमन' शब्द स्त्रीलिंग है,इसकी जगह "पर्दा" कर सकते हैं ।
फूँक कर छाछ पी रहा है वो ।
आदमी दूध का जला क्या है ।।
चाँद दिखता नहीं है कुछ दिन से ।
घर पे पहरा कोई लगा क्या है ।।
गज़ब ख्याल
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