दुश्मनी हमसे निकाली जाएगी ।
बेसबब इज्ज़त उछाली जाएगी ।।
नौकरी मत ढूढ़ तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।
लग रहा है अब रकीबों के लिए ।
आशिकी साँचे में ढाली जाएगी ।।
चाहतें अब क्या सताएंगी उसे ।
जब कोई ख़्वाहिश न पाली जाएगी ।।
इश्क़ गर अंजाम तक पहुंचा नहीं ।
फिर कही उल्फ़त ख़यालीजाएगी।।
ऐ खुदा इक दिन तेरे दर पर तो ये ।
जिंदगी बनकर सवाली जाएगी।।
इश्क़ पर कुछ तो भरोसा है मुझे ।
कैसे कह दूं बात खाली जाएगी ।।
यह छलकती आंखों से मय देखिए ।
कौन से प्याले में डाली जाएगी ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
गज़ल का सबसे जानदार शेर
नौकरी मत ढूढ़ तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।
आ0 कबीर साहब वेहतरीन इस्लाह हेतु हार्दिक आभार और नमन।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
यह छलकती आंखों से मय देखिए ।
कौन से प्याले में डाली जाएगी ।।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'नौकरी मत ढूढ़ तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।
'चाहतें अब क्या सताएंगी उसे'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'ज़िन्दगी कैसे सताएगी भला'
'ऐ खुदा इक दिन तेरे दर पर तो ये'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'ऐ ख़ुदा, इक दिन तेरे दरबार में'
'इश्क़ पर कुछ तो भरोसा है मुझे'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'इश्क़ पर अपने भरोसा है मुझे'
'यह छलकती आंखों से मय देखिए'
इस मिसरे में 'से' की जगह 'की' शब्द उचित होगा,ग़ौर करें ।
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