प्रीत भरे दोहे .....
अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।
पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll
छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।
बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।
नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।
अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।
यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।
अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।
याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।
बंद नयन में हो गया , अधरों का अभिसार।।
छलिया तेरी छल भरी, प्रीत करे आघात।
नैन मेघ करते रहे , यादों की बरसात।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा एवं सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया। आपका कथन सही है मान्यवर। इस हेतु आपका हार्दिक आभार। मैं इसे अभी संशोधित करता हूँ सर। प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, सावन पर अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
'हुआ अनावृत तिमिर में, देह देश का वेश'
इस पंक्ति के विषम चरण में 212 की जगह 122 है,देखियेगा ।
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