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धन के वे हकदार हैं , श्रम करते भरपूर

धन के वे हकदार हैं , श्रम करते भरपूर
कामचोर को क्यों मिलें लड्डू मोतीचूर ?

बैठे - बैठे खा रहे सरकारी दामाद
कर्म करें जो रात - दिन , मिले उन्हे अवसाद

कोई भी ऐसे नियम , कभी न आए रास
कर्मयोगियों को मिले , जिनसे केवल त्रास

विविध करों की भीड़ में , मेहनतकश मजबूर
टैक्स नहीं ' जनसेवकों ' पर , सम्पति भी भूर


मौलिक एवं अप्रकशित

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Comment by Usha Awasthi on August 6, 2019 at 6:47pm

  आभार आपका।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2019 at 6:36am

आ. उषा जी, सुंदर दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।

Comment by Usha Awasthi on July 27, 2019 at 9:25am

आदाब। बहुत आभार आपका।

Comment by Samar kabeer on July 25, 2019 at 2:40pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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