अवनि के विस्तृत पटल पर
प्रकृति के नित नव सृजन,
संगीत की अद्भुत समन्वित
राग-रागनियों के रस , लय ,
छन्द का विस्तार देखो
स्वयं को एक बार देखो
चहुँ दिशाओं में थिरकतीं
इन्द्रधनुषी नृत्य करतीं
रंगों की मनहर ऋचाएँ
सृष्टिकर्ता प्रकृति का प्रतिपल
नया अभिसार देखो
स्वयं को एक बार देखो
विपुल रवि , ग्रह , चन्द्र मंडित
गहन अनुशासित अखंडित
ज्योति किरणों से प्रभासित
व्योम में , गतिमान
सामंजस्य का श्रृंगार देखो
स्वयं को एक बार देखो
काल रथ आरूढ़ शक्ती
रचना और संहार करती
व्यवस्थित गणितीय नियम से ,
पार इन सबकी परिधि से
नित्य , शाश्वत सार देखो
स्वयं को एक बार देखो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद0 ऊषा अवस्थी जी सादर अभिवादन। अच्छी कविता का सृजन हुआ है, बधाई स्वीकार कीजिये
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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