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जाने कितने बढ़े हुए हैं

जाने कितने बढ़े हुए हैं
दुष्ट, अधर्मी, व्यभिचारी
पग-पग पर धोखा देते जो
लोभी, कृपण,अनाचारी

इनकी घातों का कब तक,अब
बोझ सहन करना होगा?
कलियुग के इन दुष्ट,पापियों 
का, कुछ तो करना होगा

अन्यायी, पापाचारी जो
कामी, भ्रष्ट, दुराचारी जो
इनकी कुटिल कुचालों का
प्रतिरोध हमे करना होगा


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 8:49pm

आ. ऊषा जी, अच्छी रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 11:42am

आदरणीया ऊषा अवस्थी जी, इस बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on January 14, 2019 at 5:32pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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