घोघा रानी, कितना पानी ।
बदला मौसम, बरसा पानी ।।
डूब गई गली और सड़कें ।
नगर निगम का उतरा पानी ।।
सब कुछ अच्छा करते दावा ।
नही बचा आँखों का पानी ।।
गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।
सब नदियों में उफना पानी ।।
मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।
पितरों को भी देता पानी ।।
नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।
उठा गरीब का दाना पानी ।।
जल दूषित से उनको क्या है ?
वो पीते बोतल का पानी ।।
नदियां बोलीं सुनो समंदर ।
पास न तेरे मीठा पानी ।।
बाग़ी भी तो सागर जैसा ।
रखे आँख में खारा पानी ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सामाजिक परिवेश को लेकर एक अच्छी रचना..बधाई आदरणीय
आ0अरकान नहीं लिखा आपने । ग़ज़ल की समीक्षा कैसे हो ? खैर!
नदियां बोली .... शेर में सुतर गुरबा का दोष है ।
दूषित जल हो उनको क्या है ।
जो पीते ......
डूब चुकीं जब गलियां सड़कें ।
सब कुछ अच्छा करते दावा इस शेर में रब्त नहीं है ।
नगर हुआ यह मिसरा बह्र में नहीं
आंखों में है खारा पानी
जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,हालात-ए-हाज़िरा पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'डूब गई गली और सड़कें'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,और 'गली' एक वचन में है,और 'सड़कें' बहुवचन में,ये बात भी कुछ खटकती है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
"डूब गईं गलियाँ और सड़कें"
'नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी'
ये मिसरा भी मुझे लय में नहीं लगा,इसे बदलने का प्रयास करें ।
'नदियां बोलीं सुनो समंदर ।
पास न तेरे मीठा पानी'
इस शैर के ऊला में 'सुनो' शब्द बहुवचन और सानी में 'तू' एक वचन के कारण शुतरगुरबा दोष पैदा कर रहा है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'नदियाँ बोलीं सुन ऐ सागर'
'रखे आँख में खारा पानी'
इस मिसरे में मात्राएँ तो 16 हैं पर शब्द विन्यास ठीक नहीं होने से कुछ खटकता है जैसे 'रखे आँ'22 'ख में'12,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'आँख में रक्खे खारा पानी'
बाक़ी शुभ शुभ ।
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी।बेहतरीन गज़ल।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय बाग़ी जी शानदार प्रस्तुति सादर।
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