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ग़ज़ल-कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के-बृजेश कुमार 'ब्रज'

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन

ये वक़्त के फ़साने सब पैतरे हैं छल के
तुम भी बिखर न जाना यूँ मेरे साथ चल के

उस डायरी में तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा
कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के

ये याद भी नही है शोला थ याकि शबनम
हालाँकि उस बला ने देखा तो था मचल के

अब क्या तुम्हें बताएं किस बात का गुमां है
कल रात चाँद मेरी छत पे गया टहल के

किस बात से खफा है मग़रूर ये अँधेरा
कितना करूँ मैं रौशन यूँ रात रात जल के

आसान भी नहीं है इनसे निजात पाना
हैं मुद्दतों के गम 'ब्रज' झगड़े नहीं ये कल के

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2019 at 8:46pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय जी...

Comment by vijay nikore on October 8, 2019 at 1:43pm

गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई मित्र बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2019 at 9:21pm

सलाह और इस्लाह के लिए शुक्रिया आदरणीय समर जी..कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2019 at 9:20pm

रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीय श्याम नारायण जी...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2019 at 9:19pm

स्वागत संग आभार आदरणीय बासुदेव जी...

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 11:38am

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।


'हैं मुद्दतों के गम 'ब्रज' मसले नहीं ये कल के'

इस मिसरे में 'मसले' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मसअले",देखियेगा ।

Comment by Shyam Narain Verma on October 2, 2019 at 6:35pm
आदरणीय बृजेश कुमार जी, प्रणाम, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 1, 2019 at 4:44pm

आ0 बृजेश कुमार जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है। बधाई

कृपया ध्यान दे...

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