कभी मैं बन ओंस की बूंद
मोती बन बिखर जाता हूँ
मोहकता की छवि बना
मुस्कान चेहरे पर लाता हूँ||
कभी तपता भानु के तप में
और भाप बन उड जाता हूँ
काले घने मैं बादल बन
मैं बरसता, भू-धरा की प्यास बूझाता हूँ||
कभी बन आँसू के मोती
कभी खुशी में मैं छ्लक आता हूँ
कभी दुख में बह कर के मैं
भावुकता को दर्शाता हूँ||
बेरंग हूँ, पर हर रूप में ढलता
जिसमे मिलता उसका रूप अपनाता हूँ
निश्चित हो, बस आगे बढ़ता
खुद अपना मार्ग बनाता हूँ||
कभी सागर की लहरे बन
किनारों से भी टकराता हूँ
कभी रूप बनाता भयंकर बाढ़ का
विनाश का कारण बन जाता हूँ||
कभी बन मै मीठा जल
पीने के काम में आता हूँ
जीवन का आधार मै बन
सबकी प्यास बुझाता हूँ||
कभी बनता खारा जल
समुद्र जल कहलाता हूँ
व्यापार के काम में आकर
धन संपत्ति को लाता हूँ||
बेवजह जल नष्ट करो ना
विनती सबसे करता हूँ
दूर नहीं है वो दिन भी अब
जब दूर-दूर ना मिल पाऊँगा||
चेतावनी जल सभी को देता
जल बिना क्या कर पाओगे
दूसरों को जल दोगे या
फिर खुद की जान बचाओगे||
हर बूंद, जल बेशकीमती
इस बात क्यों ज्ञान नहीं
जल से सड़के-नाले धोना छोड़
अब झाड़ू-पौचे के काम चलाओ ||
कारखानो/कंपनियों में भी
जल बचाने की योजनाएँ लाओं
बिन पानी से चलने वाली
मशीनरी ऐसी तैयार कराओं ||
पाइपलाइनों से होते रिसाव को
शीघ्रताशीघ्र जा बंद करवाओं
जल संरक्षण नियमावली को सारे देश में लागू करा
वक़्त रहते, संभल जाओ ||
बाँध चाहे पौखरे बनाओ
बेवजह जल, पर मत बहाओ
ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाओं
वर्षा जल भी खूब बचाओं ||
जितना हो सके, जल बचाओ
आन्दोलन करो चाहे मुहिम चलाओ
कुछ भी करो पर, जल बचाओ
ज्यादा से ज्यादा जल बचाओ||
"मौलिक और अप्रकाशित"
Comment
भाई सुरेंदर नाथ आपके सुझाव के लिए आभार
आद0 फूल सिंह जी सादर अभिवादन। कविता के लिए आवश्यक शब्द कलो का इसमें अभाव दिख रहा है जिसके कारण यह रचना लय में न होकर स्लोगन जैसी हो गयी है। आशा है आप शब्द कल के संयोजन पर भी ध्यान देंगें। इस रचना पर बधाई स्वीकार कीजिये। सादर
कबीर साहब को इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आभार
जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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