ट्रेन समय की
छुकछुक दौड़ी
मज़बूरी थी जाना
भूल गया सब
याद रहा बस
तेरा हाथ हिलाना
तेरे हाथों की मेंहदी में
मेरा नाम नहीं था
केवल तन छूकर मिट जाना
मेरा काम नहीं था
याद रहेगा तुझको
दिल पर
मेरा नाम गुदाना
तेरा तन था भूलभुलैया
तेरी आँखें रहबर
तेरे दिल तक मैं पहुँचा
पर तेरे पीछे चलकर
दिल का ताला
दिल की चाबी
दिल से दिल खुल जाना
इक दूजे के सुख-दुख बाँटे
हमने साँझ-सबेरे
अब तेरे आँसू तेरे हैं
मेरे आँसू मेरे
अब मुश्किल है
और किसी के
सुख-दुख को अपनाना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय dandpani nahak जी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
इस उत्साहवर्द्धन के लिये हृदयतल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय Saurabh Pandey जी। स्नेह बना रहे।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया Dr. Geeta Chaudhary जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जनाब Samar kabeer साहब
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहब
आद0 धर्मेंद्र जी सादर अभिवादन। बेहतरीन भाव पक्ष और विषय को सुघड़ता से शब्दों में बांधने पर आपको कोटिश बधाइयाँ। सादर
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, मुखड़े से ही आपने भावों को बाँध लिया है जिसका निर्वहन पूरी रचना में बहुत ही ख़ूबसूरती से हुआ है. साथ ही, मुग्ध करता है, विषय और कथ्य का सुगढ़ सम्मिलन ! हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय.
हालाँकि, नवगीत के निकष को लेकर कई अवधारणाएँ गीति-प्रतीति के क्षेत्र में व्यापी हुई हैं. इनके कारण कई रचनाओं को लेकर कइयों के लिए भ्रम की स्थिति बनती जा रही है. यह देख कर बहुत ही अच्छा लग रहा है कि आपने ऐसे किसी भ्रम या ऐसी किसी अवधारणा से अपनी इस रचना को बचाए रखा है और नवगीत का भाव तथा शिल्प पक्ष सशक्तता के साथ उभर पाया है.
हार्दिक बधाइयाँ.
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी प्रणाम, बहुत भावपूर्ण गीत की रचना हुई, बहुत अच्छा लगाI सुंदर नवगीत के लिए बधाई स्वीकार करेंI
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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