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झूम के बरख़ा बरसी है ऐसे

जैसे दिन आया हो कोई ख़ास

मेरा तन भी भीगा मन भी भीगा

जगी अब पिया मिलन क़ी आस

 

पवन वेग से जल क़ी बूंदे कुछ

पूरब से पश्चिम तक हैं जाती

और पिया के सन्देशों को मेरे

अन्तर्मन की तह तक पहुँचाती

 

इससे पहले रुक जाए बरख़ा

तुम जल्दी घर आ जाओ ना

तप्त ह्रदय की ज्वाला की तुम

अपने नेह से प्यास बुझाओ ना

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

- प्रदीप देवीशरण भट्ट -19.12.2019

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2019 at 5:35pm

आ. भाई प्रदीप जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2019 at 2:53pm

जनाब प्रदीप जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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