For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रकृति-सत्य

मेरे पिछवाड़े के पेड़ों के पत्ते

पतझर में अब पीले नहीं होते

ऋतु परिवर्तन से पहले ही, डरे-डरे

तन-मन हारे मारे-मारे उढ़ते फिरते

कि जैसे यह अकुलाते पत्ते नहीं हैं

हज़ारों घायल पक्षी एक संग मानो

पंख फड़फड़ाते, काँपते सिहर-सिहर

प्रचंड पूर्वी हवाएँ

मैदानों के फैलावों पर तैरती

और फिर उन्हीं मैदानों को चीरती

इनकी साँय-साँय धारदार औज़ार-सी

अनेकानेक पेड़ों की बाहों को काटती

टकरा रही हों मानो युद्ध में

योद्धाओं की नोकदार तलवारें

दायें से बायें, बायें से दायें, फिर बायें

सुनता हूँ अकथनीय पीड़ामय स्वर 

पेड़ों के काँपते गिरते अटकते पत्तों से

आई हों हाँफ़ती मानो क्रोधित हवाएँ

पत्तों की अंतिम साँसों से पहले उनसे

कई सदियों पहले के हिसाब चुकाने

हैं भीतर हर मानव के उर में जैसे

गोपनीय प्रश्न जीवन के, कोई गणित

कोई हिसाब जो कभी पूरे नहीं होते

तभी तो लौट-लौट आती हैं शायद

साल पर साल यह हवाएँ फिर से

इन पेड़ों को कुछ और झंझोड़ने

मासूम पत्ते कुछ और गिराने

बन जाता है पिछवाड़े का आँगन मेरा

पराजित गिरे, कुछ सूखे कुछ भीगे

अनगिनत पत्तों की मौत का घर

दूर करने को प्रकृति और मेरे बीच

बिछा कोई भयंकर फ़ासला 

चलते-चलते धीरे-धीरे सोचते हुए 

छाती से कोई वज़न उतारते

अपने ही बनाए हुए 

ज़िन्दगी के गड्ढे भरते

कोई और नई सम्भावी आशा लिए

बनाता हूँ आँगन मैं कोई नया रास्ता

सरक जाता है शाम का पीलापन

हँस पढ़ती है हवा

          -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 424

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 25, 2020 at 9:29pm
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।
Comment by Samar kabeer on January 19, 2020 at 8:56pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक बहतरीन रचना से नवाज़ा है आपने मंच को,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on January 19, 2020 at 6:17am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 4:56pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
8 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
9 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service