नियति-निर्माण
नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल
इतना तो बता दो मुझको
वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या
घोर अन्याय नहीं है क्या ...
कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा
मेरे भविष्य की डोर
और मैं ...
ज़िन्दगी की इमारत की
किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना
जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया
उदासीन खालीपन
और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार
कितने अधबने अनबुने नामहीन
सनातन सपनों की रेखाएँ
यह माना कि हर रिश्ते में होती हैं सरहदें
सरहदें सीमाएँ होनी भी चाहिएँ
पर नियति यह कैसी साज़िश रही तुम्हारी
कि हर सरहद पर मिली मुझको कँटीली झाड़ी
हर नए रिश्ते के फूलों की क्यारी में थे
कुछ पत्थर कुछ काँटे
और आँगन में थीं हमेशा
भटकती भागती कभी ठहर जाती
अनिश्चितता के मेघों की घनी छायाएँ
नियति मेरी तुम इस सब के बीच सदैव
सिर टेक एक और साज़िश को सोचती
कोई और जाल बुनती रही, मुस्कराती रही
यह कैसा कवच रहा है छाती पर तुम्हारी
तुम इतनी रूखी, इतनी कठोर कैसे रही ?
पर अब ज़िन्दगी के इस पड़ाव पर
कुछ कहूँ, पूछूँ एक सुविचारित सवाल ?
सुनो, कभी रुको, थमो, ले लो पल भर अँगड़ाई
और अपनी ही आत्मा में ज़रा झाँक कर देखो
कि भविष्य की चिंता के अँधेरे में
असामान्य अजनबी परिस्थितियों के परिवेश में
मानवीय अनुभवों अविश्वासों से अभिभूत
यदि तुम होती आतंकित
तो कैसा लगता तुमको जो मैं देता आदेश
जो मैं करता तुम्हारे भविष्य के अनुभवों का फ़ैसला
और बबूल के काँटों-सा होता तब तुम्हारा
व्याकुल इतिहास ?
न, न , न नियति मेरी, तू यूँ न हो उदास
ऐसा न होगा, मैं ऐसा कदाचित न करूँगा
हर शाम मंगल-आरती की कोमल धुन में
लौटती ध्वनि के आसपास तुम सुनोगी
मैं तुमको दूँगा हमेशा हृदयतल से आशीर्वाद
------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। एक और बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह उम्द: और संजीदा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online