For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नियति-निर्माण

नियति-निर्माण

नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल 

इतना तो बता दो मुझको

वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या

घोर अन्याय नहीं है क्या ...

कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा

मेरे भविष्य की डोर

और मैं ...

ज़िन्दगी की इमारत की

किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना

जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया

उदासीन खालीपन

और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार

कितने अधबने अनबुने नामहीन

सनातन सपनों की रेखाएँ

यह माना कि हर रिश्ते में होती हैं सरहदें

सरहदें सीमाएँ होनी भी चाहिएँ

पर नियति यह कैसी साज़िश रही तुम्हारी

कि हर सरहद पर मिली मुझको कँटीली झाड़ी

हर नए रिश्ते के फूलों की क्यारी में थे

कुछ पत्थर कुछ काँटे

और आँगन में थीं हमेशा

भटकती भागती कभी ठहर जाती

अनिश्चितता के मेघों की घनी छायाएँ

नियति मेरी तुम इस सब के बीच सदैव

सिर टेक एक और साज़िश को सोचती

कोई और जाल बुनती रही, मुस्कराती रही

यह कैसा कवच रहा है छाती पर तुम्हारी

तुम इतनी रूखी, इतनी कठोर कैसे रही ?

पर अब ज़िन्दगी के इस पड़ाव पर

कुछ कहूँ, पूछूँ एक सुविचारित सवाल ?

सुनो, कभी रुको, थमो, ले लो पल भर अँगड़ाई

और अपनी ही आत्मा में ज़रा झाँक कर देखो

कि भविष्य की चिंता के अँधेरे में

असामान्य अजनबी परिस्थितियों के परिवेश में

मानवीय अनुभवों अविश्वासों से अभिभूत

यदि तुम होती आतंकित

तो कैसा लगता तुमको जो मैं देता आदेश

जो मैं करता तुम्हारे भविष्य के अनुभवों का फ़ैसला

और बबूल के काँटों-सा होता तब तुम्हारा

व्याकुल इतिहास ?

न, न , न  नियति मेरी, तू यूँ  न हो उदास

ऐसा न होगा, मैं ऐसा कदाचित न करूँगा

हर शाम मंगल-आरती की कोमल धुन में

लौटती ध्वनि के आसपास तुम सुनोगी

मैं तुमको दूँगा हमेशा हृदयतल से आशीर्वाद

                   ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 19, 2020 at 6:15am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on January 19, 2020 at 6:15am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 7:33am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। एक और बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 13, 2020 at 7:04pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह उम्द: और संजीदा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service