For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न-मिलन

रात ... कल रात

कटने-पिटने के बावजूद

बड़ी देर तक उपस्थित रही

नींद के धुँधलके एकान्त में

पिघलते मोम-सा

कोई परिचित सलोना सपना बना

टूटा, बना, फिर टूट गया

बार-बार उस टूटे को मैं बनाती रही

सपने में घिरती शाम की लालिमा में

मेरे स्नेह से बंधे तुम आते रहे

तृप्ति की दीप्ति-सी मैं मुस्कराती रही

काश ...

वह रात

रात न होती

और ...

यदि वह रात ही थी तो काश

उस एक रात

बस उस एक रात ही सही

मैं मोमबत्ती-सी जलती

तुममें पिघलती

लुप्त हो जाती

कि जैसे संबंध-सूत्र को जोड़ते

हमारे बीच के वह कितने वर्ष

कभी बीते ही नहीं थे

सुनो

आत्मीयता की उष्मा में

मेरी रातों के पहरों को संवारते

याद आते हो, बहुत याद आते हो तुम

परन्तु अब न जाने क्यूँ

दीपक की फीकी बुझती लौ में

काले-काले मेघ-सी रुकी इन रातों में

संचित स्मृतियों को इस आसानी से जीना

मेरे लिए सौंदर्य-उल्लास भी है

मर्मांतक वेदना भी है

कि जैसे स्मृतियों के खुले आंगन में हर रोज़

दूर-दूर से पास तक फैली

जलती हुई आग है

मेरे सपने में भी तुम्हारा

ठहर न पाना

यह मेरा गुनाह सही

पर सुनो, मेरे प्यार

हो सके तो इस बार

बस एक बार

तुम आ कर न जाना

        -------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 13, 2020 at 7:17am

रचना की सराहना के लिए हृदयतल से आभार, मित्र भुपेन्द्र जी

Comment by Bhupender singh ranawat on January 12, 2020 at 5:45pm

Nice

Comment by vijay nikore on January 10, 2020 at 7:33am

भाई लक्ष्मण जी, ओ बी ओ की यह खासीयत रही है कि वह रचनाकारों को प्रोतसाहित रखते हैं। आपसे मिली बधाई के लिए आभारी हूँ, भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 3:49pm

आ. भाई विजय निकोर जी, रचना के फीचर्ड होने पर हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on January 9, 2020 at 7:00am

रचना की सराहना के लिए हृदयतल से आभार, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on January 9, 2020 at 6:59am

रचना की सराहना के लिए हृदयतल से आभार, मित्र सुरेन्द्र जी।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 6:25am

आद0 विजय निकोर की सादर अभिवादन। आप काएक अलग अंदाज है सृजन का,, मजा आता है आपकी रचनाओं का रसास्वादन करने में। इस बेहतरीन सृजन पर बहुत बहुत बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 5:20am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। अच्छी भवप्धन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय दयाराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई आपको  अच्छे मतले से ग़ज़ल की शुरुआत के लिए…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रास्ता  घर  का  दूसरा  तो  नहीं  जीना मरना अलग हुआ तो…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"2122 1212 22 दिल को पत्थर बना दिया तो नहीं  वो किसी याद का किला तो नहीं 1 कुछ नशा रात मुझपे…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ज़िन्दगी जी के कुछ मिला तो नहीं मौत आगे का रास्ता तो नहीं. . मेरे अन्दर ही वो बसा तो नहीं मैंने…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service