For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 7

................... कल से आगे

‘‘हाँ ऐसे ! बहुत सुन्दर कुंभकर्ण !’’ सुमाली रावण और कुंभकर्ण को योग का अभ्यास करवा रहा था। कुंभकर्ण को अभी यहाँ आये तीन साल ही हुये थे। इस समय वह 8 साल का हो गया था। वह अभी से शारीरिक रूप से चमत्कारिक रूप से वृहदाकार था। केवल वृहदाकार ही नहीं था, अविश्वसनीय बल का स्वामी भी था। अभी से वह अच्छे-भले मनुष्य को परास्त कर देने की सामथ्र्य रखता था। उसकी माता के लिये उसे गोदी में उठाना क्या हिलाना तक संभव नहीं था। स्पष्ट दिख रहा था कि आने वाले समय में उसके समान बलशाली कोई दूसरा खोजे नहीं मिलने वाला था। पर उसमें एक बहुत बड़ी कमजोरी भी थी। वह आलसी बहुत था। दूसरी तरफ रावण सुदर्शन व्यक्तित्व का स्वामी बन रहा था। उसका कद भी खूब अच्छा निकलता दिख रहा था पर कुंभकर्ण की तरह अविश्वसनीय नहीं था। कुंभकर्ण के विपरीत वह अत्यंत जिज्ञासु था, उद्यमी था, मेधावी था। कुल मिला कर वह भविष्य में सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ मानवों में गिने जाने लायक क्षमतायें रखता था।
सुमाली ने इनकी शिक्षा दीक्षा के लिये पूरे प्रबन्ध किये थे। वह योग में इन्हें पूर्ण पारंगत करना चाहता था। उसकी अभिलाषा थी कि शीघ्रातिशीघ्र ये इतने पारंगत हो जायें कि ब्रह्मा से योग-समाधि के द्वारा सम्पर्क स्थापित कर सकें। आगे तो विश्रवा का नाम ही पर्याप्त था। ब्रह्मा का स्नेह और आशीर्वाद इन्हें मिलना ही था। अगर कुबेर को ब्रह्मा लोकपाल बना सकते थे तो इन्हें भी यूँ ही तो नहीं छोड़ सकते थे।
रावण में उसे पूरी संभावनायें दिख रही थीं। इस विषय में वह स्वयं ही इन लोगों के लिये उपयुक्त शिक्षक था। भाइयों सहित उसने भी तो अपने समय में योग-समाधि की पराकाष्ठा को स्पर्श किया था। उन तीनों ने भी तो इसी माध्यम से ब्रह्मा को प्रसन्न किया था। रावण अब दस वर्ष का हो गया था अर्थात् उसे साधना करते सात वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वह बहुत आगे बढ़ गया था और सुमाली को विश्वास था कि वह उससे भी बहुत आगे जायेगा। वह रक्ष संस्कृति को पुनः सर्वोच्च शिखर पर ले जाकर उसका सपना पूरा करेगा। उसने मुड़ कर रावण की ओर देखा - वह समाधि में डूबा हुआ था। उसे आस-पास की दुनियाँ से कोई सरोकार नहीं था, वह ब्रह्म को अनुभव करने लगा था।
उसके अपने पुत्र और भतीजे योद्धा के रूप में अत्यंत श्रेष्ठ थे किंतु वे साधक नहीं बन पाये थे। वे समाधि में उस सीमा तक कभी नहीं डूब पाये थे जिस सीमा पर पहुँचने पर ब्रह्म से साक्षात्कार संभव हो पाता था। इसीलिये तो उसे अपने दौहित्रों पर दाँव लगाना पड़ा था। आखिर वे श्रेष्ठतम ऋषियों में से एक की संतान थे। अपने समय के श्रेष्ठतम ऋषि के पौत्र थे। स्वयं ब्रह्मा के पौत्र के पुत्र थे। उनका अंश प्राकृतिक रूप से इनमें आना ही था। उसने और उसके भाइयों ने सफलता अपनी मेहनत और इच्छा शक्ति से प्राप्त की थी किंतु इन्हें तो उसका बहुत बड़ा अंश विरासत में मिलने वाला था। पिता की ओर से योग-विद्या में श्रेष्ठता और माता की ओर से शारीरिक सामथ्र्य। इसीलिये तो उसने कैकसी को विश्रवा के पास भेजा था। ‘‘रावण आने वाले दस सालों में संसार का सर्वश्रेष्ठ योगी बन जायेगा।’ उसने सोचा।
अनायास उसकी दृष्टि फिर रावण की ओर उठ गयी। वह अब भी बिलकुल उचित मुद्रा में समाधि में डूबा हुआ था। फिर उसकी दृष्टि स्वाभाविक रूप से कुंभकर्ण की ओर गई - उसकी कमर झुक गई थी, शरीर बार-बार आगे की ओर झूल जाता था। अरे यह तो फिर से सो गया, हमेशा की तरह। वह हँसा फिर कुंभकर्ण के पास जाकर उसे झकझोरता हुआ बोला -
‘‘सो गये पुत्र ?’’
‘‘अँ ... न ... नहीं तो !’’ उसने सिर को झटका दिया फिर बोला -
‘‘नहीं तो मातामह।’’ उसने एक बार और सिर को झटका दिया। अब उसे चेत हो गया था, बोला -
‘‘मातामह जैसे ही मैं समाधि में डूबता हूँ, आप व्यवधान दे देते हैं। मेरी साधना टूट जाती है।’’
‘‘समाधि में डूबे थे या सो गये थे।’’ सुमाली ने थोड़ा सख्ती से कहा।
‘‘सच में मातामह ! समाधि में डूबा था।’’
सुमाली उसकी त्वरित बुद्धि पर फिर हँसा, है चतुर यह भी। फिर बोला -
‘‘बहाने बनाना तो शायद तूने माता के गर्भ में ही सीख लिया था !’’
‘‘क्या माता भी बहाने बनाती थी ?’’ कुंभकर्ण ताली बजाता हुआ बोला।
‘‘नहीं माता बहाने नहीं बनाती थी, यह तो तेरी अपनी विशेषता है।’’
‘‘किंतु यह बात आप की उचित नहीं है मातामह !’’
‘‘क्या बात उचित नहीं है।’’
‘‘यही कि आप मेरी तो समाधि तोड़ देते हैं पर भइया रावण को कभी व्यवधान नहीं देते।’’
सुमाली इस बोर जोर से हँसा फिर बोला -
‘‘रावण समाधि में ही है और तुम सो रहे थे। तुम हर बार सो जाते हो, इसीलिये तुम्हें जगाना पड़ता है।’’
‘‘नहीं मातामह ! सच में मैं सोया नहीं था।’’
‘‘अच्छा चलो तुम्हारी बात ही सच मान ली पर पुनः समाधि में जाने का प्रयास करो।’’
‘‘अच्छा करता हूँ, पर इस बार व्यवधान मत देना।’’
‘‘नहीं दूँगा, पर सो जाओगे तब तो जगाना ही पड़ेगा।’’
‘‘हूँ .... फिर वही बात। कहा न, मैं नहीं सोता हूँ पर मेरी बात तो आप मानते ही नहीं।’’ कुंभकर्ण ने क्रोध का अभिनय करते हुये हाथ जमीन पर पटका। उसके हाथ के नीचे आये पत्थर में हल्की सी दरार पड़ गयी थी। यह बात कुंभकर्ण ने लक्ष्य नहीं की किंतु सुमाली ने की।
‘‘अच्छा चलो नहीं दूँगा पर अब बातें बनाना छोड़ो और अभ्यास पर ध्यान दो।’’
‘‘अच्छा यह तो बताइये कि आप कैसे कह देते हैं कि मैं सो रहा था और भइया समाधि में हैं।’’
‘‘कुछ वर्ष और अभ्यास कर लो फिर मैं बताऊँगा कि कैसे कह देता हूँ। बताऊँगा क्या प्रमाणित करके दिखाऊँगा। अब आगे कोई बात नहीं अभ्यास करो।’’ सुमाली ने अपनी हँसी दबाते हुये कठोरता से कहा। कुंभकर्ण फिर पद्मासन की अवस्था में बैठ गया, आँखें बन्द करके।
सुमाली ने फिर रावण की ओर देखा, इस सारे घटनाक्रम से वह अप्रभावित था। उसे फिर प्रसन्नता हुई। अब कल से ही उसे प्राणायाम का अभ्यास कराना आरंभ कर दूँगा - उसने सोचा।
कुंभकर्ण से छोटा विभीषण भी सात साल का हो गया था किंतु उसे कैकसी ने अभी यहाँ नहीं छोड़ा था। उसके विषय में विश्रवा ने कह दिया था कि इसे अभी यहीं रहने दो। इसे बारह वर्ष तक आश्रम के संस्कारों में पलने दो। दो बेटे तो ननिहाल में छोड़ ही आयी हो। आवश्यकता समझो तो वहाँ से सहयोग के लिये किसी को यही बुला लो। इस पर कैकसी ने अधिक प्रतिरोध नहीं किया था। प्रतिरोध करने पर अगर मुनिवर को शंका हो जाती तो सारी कलई खुल जाती जो कि खतरनाक भी हो सकता था। इस प्रकार विभीषण पिता के पास ही पल रहा था अभी। अधिक चिंता की बात नहीं थी क्योंकि जो कुछ सुमाली सिखाना चाहता था वह सब विश्रवा शायद और बेहतर सिखा सकते थे। बस एक ही चिंता थी कि उसमें आर्य संस्कृति कहीं गहरे पैठ गई तो निकालना कठिन हो जायेगा।
शूर्पणखा भी पाँच साल की हो गयी थी वह भी माता के पास ही थी। उसकी कोई चिंता नहीं थी। आर्य सोच के अनुसार उसके पिता का उसे दीक्षित करने पर कोई जोर नहीं था, वे भी उसके लिये सामान्य विद्या ही पर्याप्त समझते थे। इस कारण वह माता के सान्निध्य में ही अधिक रहती थी और माता कैकसी, उसमें भरपूर रक्ष संस्कार रोप रही थी।
चलो जो होगा, देखा जायेगा। सुमाली ने चिंतन को झटके से उतार फेंका। उसका काम सिद्ध करने के लिये दो ही पर्याप्त थे। रावण का तेज और कुंभकर्ण का असीमित बल उसके सपनों को साकार करने के लिये पर्याप्त थे।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 1:47pm

ऐसे इस पोस्ट बन्द करने की सोचियेगा भी मत, आदरणीय. अभी कुछ सदस्य नियमित नहीं हैं तथा कइयों की उपस्थिति में व्यस्ता आड़े आ रही है. तो कुछ सदस्यता के अर्थ को समझने में ही भ्रम का शिकार हैं. 

कथा के विन्यास में रोचकता तो है ही सूचनात्मकता भी है.शैल्पिक दृष्टि से समझ में आती कुछ बातें आराम से करूँगा.

शुभ-शुभ

Comment by Sulabh Agnihotri on June 27, 2016 at 7:37pm

आभार आदरणीय Dr.Brijesh Kumar Tripathi जी !
बन्धुवर, यदि कहीं शिथिलता दिखाई पड़े तो अवश्य इंगित करें और इसी प्रकार टिप्पणी कर उत्साहवर्धन करते रहें।
इधर मुझे तो लग रहा था कि ओबीओ के पाठक इसे देख ही नहीं रहे हैं। यदि आज आपकी टिप्पणी न आ जाती तो कल से तो मैं यहाँ पोस्ट करना बन्द करने की सोच रहा था।

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 27, 2016 at 6:10pm

आदरणीय सुलभ जी, आपकी राम-रावण कथा के सभी अंक मैंने पढ़ी ....यह न केवल रोचक है वरन आगे के लिए उत्सुकता  बनाये रखती है , सभी पात्रों के साथ पूरा न्याय दिख रहा है . बधाई  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post ठहरा यह जीवन
"आदरणीय अशोक भाईजी,आपकी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ  एक एकाकी-जीवन का बहुत ही मार्मिक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. रवि जी "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service