For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

         

रे मानव क्या सोच रहा, इस मरघट में क्या खोज रहा ?
यथार्थ नहीं - यह धोखा है, सार नहीं यह थोथा है.
               यह जग माया का है बाज़ार.
               जहाँ रिश्ता का होता व्यापार.
कोई मातु - पिता, कोई भाई है, कोई बेटी और जमाई है.
कोई प्यारा सुत बन आया है, कोई बहन और कोई जाया है.
                    ये रिश्ते हैं छल के प्राकार.
                    ये हैं माया के ही प्रकार.
इस माया को ही कहते जग, यह है मानव - जीवन का सर्ग.
माया से अलग - विलग होकर, पर जीवित नहीं रह सकता नर.
                    सृष्टि का मूल्य चुकाना है.
                    रिश्ते का फर्ज निभाना है.
पर मात्र स्वार्थ के बंधन में, रिश्ते - नातों के संगम में.
अपने - गैरों के चिंतन में, सुख के विचार को रख मन में.
                  जो मनुज आचरण करता है.
                   मानवता से ही लड़ता है.
वह है उस कुत्ते के समान, जो करता निज लहू का ही पान.
हड्डी में दाँत गड़ाता है, बदले में रक्त जो पाता है.
                  वह तप्त रक्त भी है उसका.
                  वह तृप्त भोज भी है उसका.
सुख पाने की अभिलाषा में, उत्तम भविष्य की आशा में.
जो वर्तमान को खो देता, जो होश - चैन को खो देता.
                 वह सबसे बड़ा भिखारी है.
                 दुर्दिन का ही अधिकारी है.
नभ छूती हुई अटारी हो, रत्नों से भरी पिटारी हो.
हाथी - घोड़े हों बेशुमार, भरा - पूरा हों परिवार.
               फिर भी तन्हा ही जाना है.
               सब कुछ यहाँ रह जाना है.
मरने पर सब मुँह मोड़ेंगे, निर्जन में संग सब छोड़ेंगे.
ना बहन और माता होगी,ना पुत्र और कान्ता होगी .
                  अकेले ही जाना होगा.
                  कर्मों पर पछताना होगा.
भ्रष्ट आचरण को अपनाना , सहम -सहम कर जीना है.
हो मनुज मनुज से छल करना, निज हाथों से विष पीना है.
जो कुछ भी है सृष्टि का है, मात्र कर्म ही तेरा है.
प्रिय ! तुम्हारे कर - कमलों में, मानसरोवर मेरा  है.
                  ................   सतीश मापतपुरी  

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on March 1, 2012 at 11:18pm
सादर आभार राकेश जी 
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 1, 2012 at 3:03pm

aadarniya satish ji, is rachana ko mera karbaddha pranaam.

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 11:57am

आभार गणेश जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 11:05am

मानसरोवर श्रंखला की यह कड़ी भी अन्य कड़ियों की भाति बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है, खुबसूरत कथ्य के साथ प्रवाहमय प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय सतीश मापतपुरी जी, बस लेखन की धार को यू ही बनाए रखे |

Comment by satish mapatpuri on February 24, 2012 at 11:46pm
राजेश कुमारी जी और आशा जी, सराहना के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद 
Comment by asha pandey ojha on February 24, 2012 at 3:17pm

 samajik sarokaron ka vishleshn karti rachna  bahut khoob 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 24, 2012 at 11:25am

vaah bahut umda sashaqt rachna.badhaai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service