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आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !
ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |
"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...
इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं ओ बी ओ संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक श्री गणेश जी "बागी" का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....
परिचय
नाम : गणेश जी "बागी"
पिता : श्री मुराली प्रसाद
जन्म स्थान : बलिया उत्तर प्रदेश
शिक्षा : सिविल अभियंत्रण में स्नातक डिग्री
लोकप्रिय साहित्यिक वेबसाइट ओपन बुक्स ऑनलाइन के संस्थापक और मुख्य प्रबंधक श्री गणेश जी "बागी" वर्तमान में पथ निर्माण विभाग, पटना बिहार में सिविल इंजिनियर के रूप में कार्यरत हैं, छंद युक्त तथा छंद मुक्त कविता, ग़ज़ल, गीत, लघु कथा आदि विधाओं पर आप निरंतर लेखन करते रहते हैं, हिंदी के साथ साथ भोजपुरी में भी आपकी उन्नत रचनाएँ विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर छपती रहती है |
श्री गणेश जी "बागी" का उद्बोधन :
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
मेरे साथ भी कुछ यही हुआ, आदरणीया आशा पाण्डेय ओझा जी, आदरणीय योगराज जी, नविन चतुर्वेदी जी, राणा प्रताप जी, सौरभ पाण्डेय जी, अम्बरीश श्रीवास्तव जी, तिलकराज जी, वीनस केसरी् जी जैसे कई कई लोगो का सहयोग मिलता गया और ओ बी ओ का कारवां चल पड. आज ओ बी ओ ने तीन वर्ष से अधिक का समय पार कर लिया है. इन तीन वर्षों में कई सारे खट्टे मीठे अनुभव भी हुए जिनका जिक्र यहाँ आवश्यक नहीं है. किन्तु यह जरुर कहूँगा कि नकारात्मक शक्तियाँ पूरी ताकत से पैर खीचने में लगी थीं और लगी हैं. किन्तु मैंने भी सुन रखा था कि यदि आप पवित्रता के साथ एक कदम बढ़ाते हैं, तो पूरी कायनात मदद के लिए दस दम आगे आ जाती है, और परिणाम आपके सामने है.
साहित्य में अंतर्जाल का महत्व कितना है यह कहने की जरुरत नहीं, मैं जीता जगता सबूत ही प्रस्तुत कर रहाँ हूँ , आज हम सभी उसी अंतर्जाल की वजह से इकठ्ठा हुए है और इससे बड़ा कोई क्या सबूत होगा मैं नहीं समझता. धन्यवाद..
अगले सप्ताह अंक 9 में जानते हैं ओ बी ओ प्रधान सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....
Comment
आदरणीय गणेश भाई , आपने हम नये सीखने वालों को क्या दे दिया है ओ बी ओ मंच के रूप मे इसको केवल हम ही समझ सकते हैं , बयान करना भी मुश्किल है !! उपर आपके उद्देश्यों से और विचारों से भी अवगत हुआ !! आपकी निःस्वार्थ प्रयासों को जान कर भावुक हुये बिना नही रह पाया !! बस यही कामना है ईश्वर आपको , आपके उदेद्श्यों मे पूर्ण सफल करें !! बहुत बहुत साधु वाद !!
आपकी टिप्पणी भावुक कर गई आदरणीया गीतिका जी, आप सब से मिलकर कितना अच्छा लगा यह कहने की बात नहीं बल्कि महसूस करने की है, वह अपनत्व ओ बी ओ परिवार की अवधारणा को चरितार्थ कर रहा था । विचार रखने हेतु बहुत बहुत आभार ।
याद फिर आ गयी तरोताज़ा हो कर :-)
आपकी पहलकदमी से हमने न केवल यह शुभ क्षण देखा बल्कि इसका हिस्सा बने हम, हममे से हर एक गवाह है इस सच का| आपके बारे मे हमने जाना समझा कि साहित्य मे आपकी रुचि थी और पर्याप्त स्रोत न होने के कारण आपने ओ बी ओ अवधारणा को अस्तित्व दिया| आपने अपनी उम्र से कहीं ज्यादा योगदान दिया है साहित्य समाज को| आज हम सब मंच को समर्पित है, मंच से सीख रहे है, जो भी जितना भी, मूल मे आप ही है बागी जी!!
नमन है साहित्य के प्रति आपकी सेवकाई को !!
सादर !!
आदरणीय अभिनव अरुण जी, एक एक पल जिवंत हो उठता है न, क्या बेहतरीन मंच संचालन आपने किया था, सबकुछ आखों के सामने है,टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल भाई जी, हम सभी तो एक ही सफ़र के राही हैं ।
आदरणीय श्री बागी जी अत्यंत सलीके से सारगर्भीत
विचार रखे थे आपने | आज पुनः स्मरण हो आया | आपके कहे का मान और सम्मान और भी बढ़ जाता है क्योंकि हम सभी आपकी मेजबानी में ही इस परिवार मे शामिल हो इसका हिस्सा बने | और आज जो कुछ भी थोड़ा सीखा है इसी मंच की देन है | साहित्य मे आपका योगदान स्तुत्य और प्रशंसनीय है ! हार्दिक साधुवाद और शुभकमनाए !
आदरणीय गणेश जी बागी, सर जी! आपका हार्दिक अभिनन्दन है! कोटि-कोटि नमन है! मूक हूं मैं...! बस दो शब्द है......!
//जिंदगी के पहलुओं पर गौर से-
देख लेना, आस्मां को पास में।
आप यदि होते नहीं कण मात्र से,
ओ0बी0ओ0 आता नहीं पहचान में।। //
...................................................आपको हृदय तल से बहुत बहुत बधार्इ व तहेदिल से आभार। सादर,
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