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हल्द्वानी में आयोजित ओ बी ओ ’विचार गोष्ठी’ में प्रदत्त शीर्षक पर सदस्यों के विचार : अंक 9

अंक 8 पढने हेतु यहाँ क्लिक करें…….

आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !

ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |

"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...


इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं ओ बी ओ प्रधान सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

परिचय

नाम : योगराज प्रभाकर 
जन्म/निवास स्थान : पटिआला (पंजाब) 
जन्म: १८ नवम्बर १९६१ 
पता: कोठी न० ५३-५४, रॉयल एन्क्लेव, अर्बन एस्टेट फेस-१, पटिआला (पंजाब) 
शिक्षा : एमबीए
सम्प्रति: एक निजी कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी   
साहित्यक क्षेत्र: कहानीकार, कवि, ग़ज़लकार एवं आलोचक। वर्ष १९८० से विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पत्र पत्रिकायों में हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू की रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थायों द्वारा सम्मानित। वर्ष २०१० से ओपन बुक्स ऑनलाइन के प्रधान सम्पादक पद पर आसीन । 

श्री योगराज प्रभाकर जी का उद्बोधन :

आज के मुख्य अतिथि श्री दिनेश पाण्डेय जी, विशिष्ट अतिथि श्री अशोक जायसवाल जी, श्री वसंत जोशी जी, ओबीओ सर्वेसर्वा गणेश बागी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, मेरे साथियो,  भाइयो बहनों..

सबसे पहले हाथ जोड़ कर मैं कहना चाहता हूँ मैं जो भी कहूँगा जो इन सब वक्तायों से सुन कर मैंने समझा और ग्रैस्प किया हैं वही कहूँगा. मैंने साथियों से जो सुना, उसी में थोड़ा बहुत कांट छाँट करके मैं बोलूँगा. इस मौके पे एक शेर याद आ रहा है, ,मुझे शायर का नाम याद नहीं आ रहा: 

“लोगों नें हमें शहर का काज़ी बना दिया
इस हादसे ने हमको नमाज़ी बना दिया”

बोले हमारे दोस्त, और आर्टिकल मेरा बन गया.  विषय पर आने से पहले मैं विषय से इतर दो बातें कहूँगा अभी डॉ० प्राची नें कहा ओबीओ ऐसा मंच है जहां बेटी पिता से सीखती है , भाई भाई से सीखता है,...डॉ० प्राची जी !! आपको देख कर मैं इतना फ़ख्र महसूस करता हूँ कि मंच पर दोनों हाथ खड़े करके इस बात का इकरार करता हूँ कि ओबीओ एक ऐसा मंच है जहाँ एक पिता भी बेटी से सीखता है.

एक बात विषय से इतर; गणेश बागी जी नें अभी कहा, "आज हम सभी उसी अंतर्जाल की वजह से इकठ्ठा हुए है और इससे बड़ा कोई क्या सबूत होगा कि अंतरजाल का क्या महत्त्व है“..मैं बात कर रहा हूँ २०११ की, शायद जनवरी २०११ रहा होगा. मेरे अंतरजाल के एक मित्र थे दिनेश चौबे...... बौलीवुड में हैं वो, मैंने उनको कभी नहीं देखा था.उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा था..शायद एक आध बार फोन पे राम राम हुई थी , चैट पर बात हो ही जाती थी..तो ऐसे ही एक रात को उनसे बात हो रही थी उन्होंने पूछा “क्या चल रहा है भाई जी?” मैंने कहा “ ऐसे ही भाई जी बेटी की शादी है, कार्यों में थोडा मसरूफ हूँ, आपको ढूँढ रहा था चैट पर कि भाई बेटी की शादी में आपको उन्नीस फरवरी को पटियाला पहुंचना है..उन्होंने कहा  भैया मेरी तो उन्नीस फरवरी की तेहरान की फ्लाईट है. ईरान में शादी हुई थी ..तो वाइफ को लाने जा रहे थे. मैंने कहा ठीक है भाई , मेरा तो फ़र्ज़ बनता है मेरे जितने भाई आयें अच्छा है..चैट से फोन पे आ गए थे.. मजबूरी बताई उन्होंने कि वाइफ तेहरान में हैं १९ फरवरी को उन्हें लाना जा रहा हूँ।  खैर, राम राम हुई बात बंद हो गयी.. पन्द्रह मिनट के बाद उनका फोन आया कि मैं अपनी फ्लाईट कैंसल कर रहा हूँ, अब बेटी के पाँव पूज कर मैं तेहरान जाऊंगा.. तो ये भी एक पहलू है अंतरजाल का जिसकी बात अभी गणेश जी बागी कर रहे थे. 

अब आते हैं विषय की और “साहित्य में अंतरजाल का महत्त्व”. बातें बहुत हो चुकीं और बड़ी सार्थक बातें हुईं.. एक दो बातें जो रह गयीं या नहीं हुईं उन्हें मैं आपकी आज्ञा से कहना चाहूँगा। मेरी नज़र में अंतरजाल के ऊपर लिखने वाले जो लोग हैं वो ज़रा फराख दिल लोग हैं, खुले दिमाग के लोग हैं, जिसे बोलते हैं न “they are ready to share” otherwise कोइ बन्दा अपनी जेब से दो आने निकाल के राजी नहीं हैं। ये अंतरजाल की ब्यूटी है कि बन्दा शेयर करने के लिए राजी है. Maximum people, a majority of people is ready to share. ये मुझे अंतरजाल की एक बहुत बड़ी खूबी लगी. यहाँ पे लोग पूछने में कम हिचकते हैं . बनिस्बत इसके कि मैं किसी विधा में कमज़ोर हूँ, शास्त्री जी मेरे सामने बैठे हैं , रक्ताले जी मेरे सामने बैठे हैं, या रविकर जी मेरे सामने बैठे हैं मैं इनसे पूछूं या अरुण निगम जी मेरे सामने बैठे हैं मैं उनसे पूछूं... चार आदमी के सामने बैठा हुआ मैं थोडा odd feel करूंगा, थोडा अजीब फील करूंगा. मुझे लगेगा मेरा घटाव हो रहा है किसी से कुछ पूछने में. अंतरजाल में लोग ज़रा ऎसी बातें खुल के पूछते हैं. ठीक है मैं योगराज प्रभाकर हूँ, योगराज प्रभाकर बनके पूछने में मुझे डर लग रहा है तो मैं डॉ० प्राची सिंह बन के पूछ लूँगा या फलाना आदमी बन के पूछ लूँगा. तो यहाँ पे ये सुविधा है कि लोगबाग एक तो शेयर करते हैं एक दूसरे के साथ और दूसरे से पूछने में हिचकिचाते नहीं.

तीसरी चीज़ जिसका ज़िक्र हमारे साथियों नें अभी पहले भी किया, मैं उदाहरण के साथ बताना चाहूंगा. पुराने साहित्य का, शास्त्रीय साहित्य का जो डिजिटाईजेशन हुआ था, उसका शुमार अंतरजाल की १० बड़ी बातों में किया जा सकता है. साहित्यिक दृष्टिकोण से, हम लोग अगर लिखने बैठें, कुल पांच भी, तो पहले दस में ज़रूर आएगा.. हम लोग,  यहाँ मंच पे बैठे हुए साथी मेरी बात से सहमत होंगे, हम मुद्दतों से 'छंद प्रभाकर' ढूँढ रहे थे, जिसकी कॉपी कहीं पे अवेलेबल नहीं थी जिनके पास थी वो ऐसे दबा के बैठे हुए थे जैसे छाती पे रख के मर जायेंगे, की साथ ले जायेंगे ये किताब , यह ग्रन्थ भी हमें उपलब्ध करवाया अंतरजाल नें.

बागी जी, आपने अपना एक्ज़ेम्प्ल दिया था ! दूसरी एक्ज़ेम्प्ल मैं देता हूँ, दरअसल छंदों में सबसे बड़ा ऐस होल  मैं था।  मैंने छंद कभी सुने ही नहीं थे, कॉलेज में जब पढता था उस वक़्त पंजाबी में कवित्त ज़रूर कहा करता था, मगर मुझे नहीं पता कि इसी बला को घनाक्षरी भी बोलते हैं, पंजाबी में कवित्त कहा करता था. ओबीओ पे आया तो पचास छंदों का नाम सुना। और मेरे ख़याल से कई दर्जन छंदों पर काम भी किया है.

सभी जानते हैं की ये मंच सीखने सिखाने का है,  मैं छंदों के पॉइंट ऑफ व्यू से बोल रहा हूँ।  देखिये कुछ लोग छंद "कहते" हैं - जैसे हमारे रविकर जी हैं, रक्ताले जी हैं , शास्त्री जी हैं..ये रचनाएं "कहते" हैं.. दूसरे कुछ लोग हैं वो रचनाएं "लिखते हैं", और कुछ ऐसे हैं जो उन पर मुँह मारते हैं. उस समय मैं भी छंदों पर मुहँ मारा करता था , न "कहता" था , न "लिखता" था। एक बार मैने एक कुण्डली डाली, यानी कुण्डली पर मैंने भी "मुहँ मारा", तब  आचार्य संजीव सलिल जी नें मेरी वो क्लास लगाई आज से तीन वर्ष पहले, कि  मैं उसके बाद आजतक मात्राओं की गिनती नहीं भूला. तो ये है होती है गुरु शिष्य परंपरा. जोकि अंतर्जाल की एक खास देन है. 

डॉ नूतन जी की बात के हवाले से कह रहा हूँ।  डॉ नूतन जी,  उत्तराँचल में आप रह रहे हैं आपने एक किताब लिखी, प्रकाशित करवाई, तो ज़ाहिर है आप अपनी जेब से करवाएंगे १०००-१५०० कॉपी करवाएंगे. ८००-९०० फ्री में बाँट देंगे, ३००-४०० को दीमक लग जाएगा...एनी वेज  ..वो उत्तरप्रदेश की सीमा के पार नहीं जा पायेगी. अब मैं पंजाब में बैठा हूँ,  मेरे को इत्तेफाक से आपकी किताब मिल गयी, मैंने योगराज प्रभाकर के नाम से छपवा ली, हश्र भले ही मेरा भी आपके जैसा ही हुआ, लेकिन इसकी कोई पकड़ नहीं है.. इसके विपरीत इंटरनेट पे आपने एक चीज़ डाली, मैंने उसकी कॉपी की है , या अपने नाम से छापवाई हैं तो वो एक सेकेण्ड में पकड़ी जाती है, कैसे, ये आप सब लोग जानते हैं.

छंद विधाओं के ऊपर बहुत काम हुआ है..अंतरजाल पे भी, अंतरजाल के बाहर भी लेकिन कुछ समय से हमारी जो सनातनी विधाएं थीं, हमारे जी छंद थे, उनके ऊपर ओबीओ में   पोज़िटिव कार्य हुआ है।  "छन्न पकैया" और "कहमुकरी", ये दोनों विधाएं डायलिसिस पे थीं..आज इनपे काम शुरू हुआ है और  दो मार्ग और मिले हैं साहित्यकारों को चलने के लिए.

मैं इस बात को बड़े फ़ख्र से कहता हूँ, कि इन दो विधाओं को पुनः सजीव करने का जो शरफ है वो ओबीओ को हासिल है.  जोकि हमारे इस मंच के ज़रिये पुनर्जीवित होने की स्थिति में आये हैं ..इन्हें डायलिसिस से हम लोगों ने उठाया है

कहने को बहुत कुछ है लेकिन समय का अभाव है, इसलिए अब सिर्फ एक ही एक बात कहूँगा - ‘धन्यवाद’

अंक १० में जानते हैं ओ बी ओ सदस्य श्री सुभाष वर्मा जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

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Comment

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Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 1:59pm

आपको साक्षात सुनना बहुत गौरव की बात है| जब हमने मैंने और महिमा श्री ने आपके चरण छूए तो तो आपने हमें उदात्त भाव से उठा कर हृदय से लगा लिया| हम गौरान्वित हुये| आपके जैसा व्यक्तित्व हमें लाइव देखने को मिलता वही बहुत था, लेकिन अब तो हम और भी गर्वीले हो गए| आपसे कुछ लोगों की छोटी छोटी शिकायत करना भी कितना सहज और सुखद था|  

आपने 'कहमुकरियों' को और 'छन्न-पकइया' को पुनर्जीवन दिया है| गजल की छोटी छोटी बात पहले से बताके मुझे मंच पर भद्द पिटने से कई बार बचाया आपने|  :-)

आपकी सदैव आभारी हूँ| 

सदैव सनेहाकांक्षी गीतिका

सादर!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 2:16am

आप द्वारा की गयी बहुत सी बातों का चूँकि कई भाइयों के साथ-साथ मैं भी साक्षी हूँ, आदरणीय योगराजभाईजी, मैं इसे एक सिरे से समझता हूँ कि अंतरजाल ने साहित्य और साहित्यकारों को क्या दिया है. सर्वोपरि, आपका व्यक्तिगत योगदान क्या है यह अंतरजालऔर विशेषकर अपना मंच ओबीओ खूब समझता है और सादर नत है. आपके मार्गदर्शन का लाभ अंतरजाल के कारण ही हम सभी को मिल सका है.

मैं यदि अपनी बात करूँ तो ग़ज़ल की कई सूक्ष्म बातें यों-यों मुझे आपने बता दी है. जोकि आज मेरे लिए अमूल्य थाती हैं.

हलद्वानी की गोष्ठी में आपको साक्षात न सुन पाने का मलाल था, वह आज अंतरजाल के कारण जा सका है. 

ऐडमिन को इस साझेदारी के लिए हार्दिक बधाई.

सादर

Comment by मोहन बेगोवाल on November 1, 2013 at 11:33pm

सर जी , आपका बात से बात को आगे ले जाने का अंदाज़  बहुत अच्छा लगा ,इसी से जिन्दगी की कई बातें पता चली ,एडमिन महोदय का भी बहुत धन्यवाद 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 30, 2013 at 10:51am

आदरणीय योगराज जी, सादर नमन..

आपने अपने उद्वोधन  में हल्द्वानी में आयोजित साहित्य समारोह के विषय अंतरजाल के महत्व को अपने अनुभव द्वारा, आदरणीया डा. प्राची जी, व् आदरणीय गणेश जी की अंतरजाल के ही महत्व पर की गई बातों को , हमारे समक्ष प्रस्तुत कर, पूरी तरह से अंतरजाल के महत्व का बखूबी सजीव चित्रण कर दिया है, आपको हार्दिक बधाई व् शुभकामनायें

आदरणीय एडमिन जी का बहुत बहुत आभार

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 11:09pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के विचारों से अवगत कराने के लिए आ0 एडमिन महोदय का धन्यवाद.....

Comment by MAHIMA SHREE on October 29, 2013 at 9:20pm

वाह बहुत ही सार्थक हल्द्वानी समारोह की विचार श्रृंखला की  अविस्मर्णीय स्मृति को ताजा   करती महतवपूर्ण कड़ी .....

आदरणीय योगराज सर की छत्र छाया में ओबिओ छन्दों की काव्यधारा में अंतरजाल पर जिस तरह से सबको लिए जा रहा है ... ये आज कहने की बात नहीं रह गयी है ...आज फिर से आदरणीय सर के विचारों को पढ़ कर  छंदों को फिर से स्थापित करने के प्रयासों को जाना ... तथा उनके बारें में जानकारी मिली  आदरणीय एडमिन महोदय का हार्दिक आभार ..

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