पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!
कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!
अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!
प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!
विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!
प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
अति सुंदर, प्रेम रस में डूबी हुयी दोहावली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय राम भाई
वाह अनुज क्या बात है बेहद सुन्दर दोहावली रची है आपने पूर्णतया प्रेम रस में डूबकर बधाई स्वीकारें.
आदरणीय राम भाई , सभी दोहे बहुर सुन्दर रचे है आपने , आपको ढेरों बधाइयाँ !!!!
क्या बात है भाई ....................बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने
बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
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