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दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!

प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!


************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 974

Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 22, 2013 at 1:15am

अति सुंदर, प्रेम रस में डूबी हुयी दोहावली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय राम भाई

Comment by ram shiromani pathak on November 21, 2013 at 11:12pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी। ।सादर//
Comment by ram shiromani pathak on November 21, 2013 at 11:12pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। ।सादर//
Comment by ram shiromani pathak on November 21, 2013 at 11:11pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई संदीप जी। ।सादर//
Comment by ram shiromani pathak on November 21, 2013 at 11:10pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम जी। ।सादर//
Comment by ram shiromani pathak on November 21, 2013 at 11:09pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपाल जी। ।सादर///////// सरदी सही शब्द है क्या ??
Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 5:48pm

वाह अनुज क्या बात है बेहद सुन्दर दोहावली रची है आपने पूर्णतया प्रेम रस में डूबकर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 5:43pm

आदरणीय राम भाई , सभी दोहे बहुर सुन्दर रचे है आपने , आपको ढेरों बधाइयाँ !!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 21, 2013 at 3:43pm

क्या बात है भाई ....................बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने

बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये

Comment by Shyam Narain Verma on November 21, 2013 at 1:48pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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