For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यर्थ प्रपंचन छोड़कर,मीठी वाणी बोल! 
कर तू खुद ही न्याय अब,अंतर के पट खोल !!

धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!

लोगों को क्या हो गया,करते उल्टी बात !
कहें रात को दिवस अब ,और दिवस को रात !!

शब्दों के सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।
चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥

नीति नियम दिखते नहीं ,भ्रष्ट हुए सब तंत्र !
जिसे देखिये रट रहा ,लोलुपता का मंत्र !!

जानबूझकर क्यों मनुज ,करते हो तुम भूल !
चुभने वाली हैं यही ,तुमको बनकर शूल !!
********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 7, 2013 at 9:48pm
is amulya sujhav v anumodan hetu hardik aabhar adarneey surendra kumaar ji... saadar
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 6, 2013 at 10:49pm

धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!

जानबूझकर क्यों मनुज ,करते हो तुम भूल !
चुभने वाली हैं यही ,तुमको बनकर शूल !!

प्रिय शिरोमणि जी सुन्दर कथ्य युक्त प्रभावी और अच्छे दोहे ---ऊपर के दोनों दोहे भाये। .. बाकी सौरभ भ्राता जी की बातों पर तो आप ने गौर किया ही
निरंतर सुधार होता चले तो आनंद और आये
जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by ram shiromani pathak on November 30, 2013 at 8:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया गीतिका जी। .... सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 30, 2013 at 7:59pm

आदरणीय सौरभ जी सर्वप्रथम तो क्षमा प्रार्थी हूँ कि मै रचना पर देर से आ रहा हूँ,बहुत व्यस्तता है आजकल, आप कि सभी बातों से सहमत हूँ !!रही बात आपके सुझाव मैंने बहुत ध्यान से देखा है और सुधार भी किया लेकिन समयाभाव के कारण पोस्ट नहीं कर पाया !!मैंने आपसे इसलिए दुबारा पोस्ट को देखने के लिए कहा क्यूंकि जब सब वाह वाह करके निकल जायेंगे तो गलती और सुझाव कौन बतायेगा ,आप से सदैव मार्गदर्शन कि अपेक्षा रखता हूँ ///

सब आप की डांट व सुझाव का ही नतीज़ा है जो कुछ सीख पा रहा हूँ। ……वाह वाही कि दुनिया क्षणिक सुख तो देती है लेकिन मैंने स्वयं अनुभव किया है रचना कर्म में बहुत गिरावट आ जाती है, शेयर मार्किट कि तरह और उस शेयर को कोई खरीददार नहीं मिलता है !!

आपके इस अमूल्य सुझाव व् मार्गदर्शन के लिए सदैव आभारी रहूँगा आदरणीय। …… कोटि कोटि आभार। … सादर प्रणाम


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 30, 2013 at 1:45pm

जब मैंने इस पोस्ट की अपनी पहली टिप्पणी में लिखा था कि -- व्याकरण को भी आपने हिसाब से प्रयुक्त किया है.  तो

अपेक्षा थी कि राम भाई इसके प्रति संयत होते, तार्किक होते और पता करते कि ऐसा क्यों लिखा गया है.

इस मंच की अवधारणा ही ऐसी है कि यहाँ हम एक-दूसरे से सीखते हैं. अपनी-अपनी समझ भर सभी अपनी बातें साझा करें, ऐसा माना जाता है.

यह अवश्य है, कि, एक उम्र के बाद या एक सीमा के बाद सीखने में संकोच अवश्य हावी होता प्रतीत होता है लेकिन इस संकोच से पार पा जाने वाला बड़े स्तर पर प्रशंसा भी पाता है. यह उदाहरण सहित हमारे सामने है.

इधर राम शिरोमणि भाई ने व्यक्तिगत रूप से मुझसे आग्रह किया है कि मैं पुनः इन दोहों पर अपनी मीमांसा दूँ और दिशा निर्देश करूँ. यह गंभीर तथ्य है. बात अवश्य गंभीर हो गयी है. हमें उस पाठक के तौर पर यह अवश्य गुनना चाहिये कि किसी रचनाकार को हमारी वाहवाहियों के बाद भी उसी प्रस्तुति पर इस तरह से आग्रह करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?

क्या हम सात्विकता से पाठकधर्म निभा रहे हैं ??

जिन दोहों पर राम भाई को इतनी वाहवाहियाँ मिल रही है, या मिली हैं, वह दोहों के कथ्य-भाव के कारण ही मिली हैं. कितनों ने ही वाहवाह की है यहाँ, लेकिन कितनों ने इन दोहों को वाकई देखने-समझने की कोशिश की है ? ताकि एक रचनाकार के तौर पर भाई राम को साहित्यिक लाभ मिल सके ? जबकि सारे पाठक स्वयं रचनाकार हैं !

क्या एक सचेत रचनाकार सिर्फ़ वाहवाह करता है ? इसका अर्थ क्या समझा जाय कि आपस में एक दूसरे का हम अंतरमन से बुरा ही सोचते हैं ? ताकि, अगला वाहवाहियों से फूल कर कुप्पा हुआ कहीं के साहित्यिक मंच या ऐसे किसी बाहरी स्थान पर हास्यस्पद हो कर रह जाये ? .. छिः !! ऐसा सोचना तक घिनौना है.

फिर, ऐसी बेतहाशा वाहवाहियों का क्या अर्थ है ???

भाई रामजी के इन दोहों को उनकेआग्रह के अनुसार मैं पुनः देखने की कोशिश करता हूँ -

व्यर्थ प्रपंचन छोड़कर,मीठी वाणी बोल!
करो स्वयं से न्याय अब,अंतर के पट खोल !!.. .. बोल खोल आदि तू के साथ प्रयुक्त होते हैं. बोलो, खोलो, करो आदि तुम के साथ. करो स्वयं.. वाले पद को कर तू खुद ही न्याय अब.. किया नहीं जा सकता ? यानि वाक्य तू से निर्धारित हो या तुम से.

धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!... . .  यह एक आदर्श स्थिति है सकारात्मकता की. बहुत खूब ! वाह वाह !!

लोगों को क्या हो गया,करते उल्टी बात !
कहें रात को दिवस अब ,और दिवस को रात !!..... दिवस  का त्रिकल दोहा छंद में शब्द संयोजन के लिहाज़ से ऐसी जगह पर इस तरह मान्य होना चाहिये ? इसमें संशय है.

भाई रामजी की किसी और दोहा प्रस्तुति में मैंने ऐसे विन्दु को लेकर प्रश्न किया है और उत्तर न मिलने पर इन्हें अगाह भी किया है. अभी तक उस प्श्न का उत्तर नहीं मिला है मुझे. यही कारण है कि यह समस्या यहाँ पूर्ववत विद्यमान है.

शब्दों की सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।
चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥.......... हे विधाता.. आपका गाय या गैयवा कबसे दूध नहीं देने लगाशब्दों की सामर्थ्य ?? 

हे देवता, सामर्थ्य शब्द का लिंग-परिवर्तन ही कर डाला ?!

निति नियम दिखता नहीं ,भ्रष्ट हुए सब तंत्र !
जिसे देखते रट रहा ,लोलुपता का मंत्र !!.............. निति को नीति कीजिये तो प्रथम विषम चरण की मात्रा भी ठीक हो. फिर नीत-नियम बहुवचन हुए न ! इनके लिए दिखता नहीं  कैसे स्वीकार्य हो ? दिखते नहीं होना था न ? फिर, दूसरे विषम चरण में जिसे देखते  का अर्थ हुआ कि ऐसा सिर्फ़ इन दोहों का रचनाकार ही देखता-समझता है बाकी की अक्ल पर पत्थर पड़ा हुआ है. इसे जिसे देखिये कर ठीक किया जा सकता है.  है न ?

जान बूझकर क्यों मनुज ,करते हो तुम भूल !
चुभने वाली हैं यही ,तुमको बनकर शूल !!............. भाई मेरे, भूल करना तो मनुज या मनुष्य का पारिभाषिक कर्म है. कहते भी हैं न, Man is to err.. ! मनुष्य या मनुज अपनी भूलों से ही सीखता है ! सदा से ! हाँ, अपनी भूलों से वह सीखे, इन्हें न दुहराये. फिर गड़बड़ी कहाँ हुई भूल करने में ! मैं तो अपने सीखने के क्रम में हज़ारों दफ़े भूल करने का आग्रही हूँ ताकि उनके सापेक्ष मुझे सिखाया-बताया जाय तो तथ्य मुझे ठीक तरह से समझ में आ जाये. हाँ, अपराध नहीं करना चाहता. कोई जागरुक और संयत मनुज या मनुष्य अपराध नहीं करे, वर्ना जी का जंजाल बन जायेगा.. मुझे लगता है भाई रामजी, यही कुछ कहना चाह रहे हैं इस दोहे के माध्यम से.

हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by वेदिका on November 30, 2013 at 7:44am

दोहावलि सुंदर प्रस्तुत हुयी है! 

शब्दों की सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।
चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥ .....सुंदर और सत्य कथन!

खूब खूब शुभकामनाएं प्रिय राम भैया!! 

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 11:38pm

 बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी,..... सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 11:38pm

 बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई संदीप  जी,..... सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 11:37pm

इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई बृजेश जी,टंकण अशुद्धि हो गयी है  उसे सुधार लेता हूँ। ..... सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 11:33pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई राजेश जी। …। सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service