चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !
लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!
भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !
नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आपका भाई अरुण शर्मा जी ..... सादर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सौरभ जी .............आगे से ध्यान रखूँगा। .. सादर
अनुज राम सवैया पर बहुत ही सुन्दर प्रयास किया है आपने अग्रजों के कहे पर ध्यान दें. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
//मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है//
तो प्रशस्ति गान पर अपनी स्वीकृति के स्थान पर यथोचित कार्य कीजिये. किसी रचना पर मिले सुझाव या संशोधन का फिर क्या अर्थ होता है ?
इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सौरभ जी ...
////लेकिन हमारे रचनाकार लगता है अभी कई पाठकों की वाहवाही से उपजी मुग्धावस्था से अपना उत्साहवर्द्धन कर रहे हैं. अमूल्य सुझावों पर बाद में सोचेंगे.///आदरणीय सौरभ जी मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है ,,,,,,,//सादर
इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आपका भाई सुशील जी ...
आदरणीय सुशील जी, आदरणीय अरुण जी के संदर्भ से आपका कहना सही है. इस प्रस्तुति पर सुझाव पहले भी आ चुके हैं. लेकिन हमारे रचनाकार लगता है अभी कई पाठकों की वाहवाही से उपजी मुग्धावस्था से अपना उत्साहवर्द्धन कर रहे हैं. अमूल्य सुझावों पर बाद में सोचेंगे.
भाईजी, यह परिपाटी ओबीओ पर भी बेतुके घर करती जा रही है कि रचना पर बस वाहवाह कर दिया जा रहा है. और हम रचनाकार अपने उत्सहवर्द्धन के लिए आभारी होते चले जाते हैं. मेरा ऐसा कहना तनिक कटु लग रहा होगा लेकिन यह मंच सीखने-समझने वालों के कार्यशाला के माहौल के लिए माना-जाना जाता है. और, सर्वोपरि, ऐसा नहीं कि हम सभी अच्छी और संयत रचनाओं पर दिल खोल कर वाहवाह नहीं करते.
सादर
बहुत ही सुंदर सवैया है आ0 राम भाई..... हार्दिक बधाई........ लेकिन आ0 अरुन जी के सुझावों पर ध्यान देने की आवश्यकता है......
इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय अरुण निगम जी .... सादर
सुन्दर सवैया के लिए बधाई.सुन्दर दृश्य खींचा है. भांती जरा खटक रहा है.होंठ के साथ मुसकाती को भी एक बार देख लें...........
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