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१-डर

भयातुर आँखें
शक की नज़रों से देखती सबको
विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज
कब क्या कर बैठे किसे पता


२-सत्य

जीवन एक तहखाना है
हम सब कैदी
जो ईश्वर से प्यार नहीं करता
वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है
और जो ईश्वर से प्यार करता है
वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है

३-रहस्य

ये कैसा रहस्य है
सारी उन्मनता.
सारी व्यग्रता
सारी म्लानता
तुम्हारे नेह की तरलता में
घुल जाती है

४-पता है

पता है न
दर्पण सच बताता है
जब असत्य का दर्पण टूटेगा
खुद का विकृत चेहरा
क्या?देख पाओगे

५- माँ

जब मै छोटा था
आप ही कहती थी
मरने के बाद लोग तारे बन जाते है
रात भर जागता हूँ
उदास तारों के बीच
खोजता रहता हूँ
एक हँसते तारे को
शायद!
किसी एक तारे में
मेरी माँ हँसती हुई दिख जायॆ

*********************************

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 650

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on November 8, 2013 at 11:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया  प्राची  जी। सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 8, 2013 at 4:02pm

बहुत सुन्दर क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं प्रिय राम शिरोमणि जी 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by ram shiromani pathak on November 7, 2013 at 11:11pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी,आपका आशीर्वाद मिलना ही मेरे  लिए  बहुत बड़ा उपहार है…सदैव प्रयासरत रहूँगा ।सादर   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 11:01pm

अतुकान्त क्षणिकाओं के लिए बधाई भाई राम शिरोमणिजी. आप जिस तरह से सतत प्रयास कर रहे हैं वह आपकी लगन का परिचाय है. आपक यह प्रयास दीर्घकालिक हो.

शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on November 7, 2013 at 10:14pm

many many thanks to you respected gopal narain ji....

Comment by ram shiromani pathak on November 7, 2013 at 10:13pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई सत्यनारायण जी …सादर 

Comment by Satyanarayan Singh on November 7, 2013 at 5:37pm

आ. रामशिरोमणि जी सभी क्षणिकाएं सुन्दर और भाव से पूर्ण है. हार्दिक बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 4:18pm

Deepak Ji

I really enjoyed your sentiments.

Comment by ram shiromani pathak on November 6, 2013 at 10:25pm

बहुत  बहुत  आभार आदरणीय  गिरिराज  जी  ।सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2013 at 9:00pm

आदरणीय सभी क्षणिकायें सुन्दर बन पड़ी है !!! आपको बधाई !!!!

पता है न
दर्पण सच बताता है
जब असत्य का दर्पण टूटेगा
खुद का विकृत चेहरा
क्या?देख पाओगे -----------------इस क्षणिका के लिये  विशेष दाद कुबूल करें !!!!

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