बना बनाया कौन आया
सब यहीं बनते हैं
बनो, बनाओ स्वयं को शांति कमल हरी सा
या तांडव करते शंकर का त्रिशूल
मानव ईश की सबसे प्रखर रचना हो सकती है
या ईश मानव की सबसे बड़ी भूल?
रच जाना ही सबसे प्रमुख ध्येय है
रचयिता ही सृष्टि का मूल |
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह..... आपकी निर्मल सोच एवं मनोभावों की इस सुंदर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई आ0 ध्यानी जी...
अच्छी कविता! आपको हार्दिक बधाई!
कहन की गहराइयों के साथ कविता में कवित्त का बचे रहना बहुत आवश्यक होता है!
इस अभिव्यक्ति पर आपको एक बार फिर हार्दिक बधाई!
सुंदर भअव पूर्ण रचना बधाई आपको आ0 अनुपम जी ।
बहुत बढया, क्या बात, क्या बात
सुंदर सोच और भावपूर्ण कविता की बधाई अनुपम भाई। हम महापुरुष बन सकते हैं , देवत्व को प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन उधार की विदेशी संस्कृति और विदेशी भाषा और हमारी व्यवस्था हमें सच्चा , देशभक्त भारतीय बनने में भी बाधा उत्पन्न करती है । छोटे सपने ही पूरे नहीं होते । साफ कहें तो हम मानव ही नहीं बन पाये।
बहुत सुन्दर चिंतन से उपजी रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीय अनुपम भाई !!!!!!
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