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अनुपम ध्यानी's Blog (6)

बनूँगा, बनाऊंगा ! Copyright (c)

स्मृति बनूँ या बनूँ स्मारक?
सुधार बनूँ या बनूँ सुधाकर?
पिनाकी बनूँ या ब्रह्मास्त्र?
गाण्डीव  बनूँ या पशुपतास्त्र?
मूल बनूँ या मौलिक?
आलोक या अलौकिक?
जीवन या संजीवनी?
दमन या दामिनी?
छंद बनूँ या स्वच्छंद
मुक्तक या निबंध
सागर बनूँगा, छोर भी
सावन बनूँगा, मोर भी
उजाला भी, अंधेरा घनघोर भी
समस्या का तोड़ भी
आशा की डोर भी
उत्तर बनूँगा,…
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Added by अनुपम ध्यानी on October 31, 2013 at 1:00am — 6 Comments

चलो घर की ओर! Copyright©

घोंसलों से पलायन करते परिंदे

आकाश की ऊँचाई नापने निकलते हैं

पंख फैलाने की सीख घर से लेके

मदमस्त गगन में उड़ते हैं

जहाँ दाना देखा उतर जाते

फिर नये झुंड के साथ , नयी दिशा में मुड़ जाते



नीले गगन की सैर, इंद्रधनुष की अंगड़ाई में लीन

कभी आसमान में स्वतंतरा, कभी हवा के बहाव के आधीन

घोंसले की गर्मी और मा के दुलार को भूल

नये चेहरों को आँखटे, उनके संग हो…

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Added by अनुपम ध्यानी on March 19, 2013 at 12:10am — 1 Comment

जज़्बा !!! Copyright ©

जीवन के इस मोड़ पे

शब्दों से घटाने

और कविताओं के जोड़ में

अनुभवों के सागर में

और इस धरती पे जीवन के

निचोड़ से

क्या सीखा मैंने?

रोता रहा हूँ कई बार

और कोसा भी सबको मैंने

किस्मत के आगे भीख मागी

और पुकारा रब को भी मैंने…

Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 12, 2010 at 12:14pm — 3 Comments

प्रशांत ! Copyright ©

कैसे विनम्र सा बैठा



अथाह सागर फैला हुआ



मौत सा सन्नाटा सुनाई देता



इसके अन्दर सिमटा हुआ



बंद करके आँखें मैं



लेट गया सफ़ेद रेत पे



सुनने को आतुर था मन



सुर जो बनता



लहरों के साहिल पे टकराने से



जब पूरा ध्यान उन लहरों पर था



और मन के सारे द्वार मैंने खोल दिए



पहचानने को वो शक्ति मैं था बैठा



ऐसा लगता मानो कह रहा सागर



धैर्य हूँ मैं



शंकर हूँ और शक्ति हूँ… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 7, 2010 at 1:24am — No Comments

कायरता या बुद्ध Copyright ©.







ज्ञात हैं हमें कि हर भाव

इतना शक्तिशाली होता है

कि वो आपका जीवन

बदल दे

असीम शक्ति का

प्रमाण है भाव

व्यक्त न भी हो सके तो

क्या

है वो ही प्रणाम

जो पशुओं और मनुष्य में

करता है चुनाव

एक ऐसा ही भाव है

कायरता।





कायरता, बुजदिली

या जो भी कह लो

अद्भुत शक्ति है इसमें

जो काया पलट दे

और साधारण से

असाधारण , अनुपम में बदल दे

भय हो जब हार… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 10:01pm — 2 Comments

2010 की अगस्त क्रांति Copyright ©

जैसे ही अगस्त आया है



वैसे ही सब कवियों ने



तिरंगा उठाया है



और स्याही में कलम डुबो के



सब को यह दिलासा दिलाया है



कि “हम भूले नहीं हैं



भारत हमारा है”



काला है , गोरा है



अभिशप्त है तो क्या हुआ



दरिद्र है तो क्या हुआ



भ्रष्ट है तो क्या हुआ



बाकी न सही पर



अगस्त आते ही हमे याद



ज़रूर आया है



भारत हमारा है।







शब्दावली से… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 8:30am — 10 Comments

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